Book Title: Jain Pujanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 199
________________ जैन पूजांजलि ज्ञान चक्ष ओं को खोलो अब देखो निज चैतन्य निधान । देह और वाणी मन से भी पार विराजित निज भगवान | हे प्रभु मुझे मार्ग दर्शन दो अब मैं श्रागे बढ़ जाऊं । प्रणुव्रत धार महाव्रत धारूं गुण स्थान भी चढ़ जाऊ ॥ परम पंच कल्याण विभूषित जिन प्रभु की महिमा गाऊँ । घाति अवाति कर्म सब क्षय कर शाश्वत सिद्ध स्वपद पाऊं ॥ ॐ ह्रीं श्री जिनेन्द्र पंच कल्याणकेभ्यो पूर्णार्घम् नि० । तीर्थङ्कर जिन देव के पूज्य पंच कल्याण | भाव सहित जो पूजते पाते शांति महान || Xxइत्याशीर्वादः जाप्य ॐ ह्रीं श्री जिन पच कल्याणकेभ्यो नमः । ¤¤¤ श्री त्रिकाल चौबीसी पूजन श्री निर्वाण श्रादि तीर्थङ्कर भूतकाल के तुम्हें तुम्हें श्री वृषभादिक वीर जिनेश्वर वर्तमान के महापद्म अनंत वीर्यं तीर्थंङ्कर भावी भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को करूं [१८७ तुम्हें नमन । नमन ॥ नमन । नमन ॥ ॐ ह्रीं भरत क्ष ेत्र संबंधी, भूत भविष्य वर्त्तमान जिन तीर्थङ्कर समूह अत्रअवतर अवतर संवौषट, । ॐ ह्री भूत भविष्य वर्त्तमान जिन तीर्थङ्कर समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं भूत भविष्य, वर्त्तमान जिन तीर्थङ्कर समूह अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट । सात तत्त्व श्रद्धा के जल से मिथ्या मल को दूर करूँ । जन्म जरा भय मरण नाश हित पर विभाव चकचूर करूं ॥

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