Book Title: Jain Pujanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 217
________________ जैन पूजांजलि शाश्वत भगवान विराजित है जानद कद तेरे भीतर | पदगल तन में अनत्व मान देखा न कभी निज रूप प्रखर ॥ | २०५ गगन मण्डल में उड़ जाऊं । मदन... तीन लोक के तीर्थ क्षेत्र तव वंदन कर प्रथम श्री सम्मेद शिखर पर्वत पर मै जाऊँ । बीस टोंक पर बीस जिनेघर चरण पूज ध्याॐ ॥ ... अजित आदि श्री पार्श्वनाथ प्रभु की महिमा गा शाश्वत तीर्थराज के दर्शन करके हर्ष ॐ ॥...... फिर मंदारगिरि पावापुर वासुपूज्य ध्याऊँ । हुए पंचकल्याणक प्रभु के पूजन कर आऊँ || गगन... उर्जयंत गिरनार शिखर पर्वत पर फिर जाऊँ । नेमिनाथ निर्माण क्षेत्र को सुख पाऊँ ॥ गगन... फिर नवापुर महावीर निर्वाण परी जाऊँ । जल मंदिर में चरण पूजकर ना ह ॥ गगन... फिर कैलाश शिखर अप्टापद श्रादिनाथ प्याऊँ । ऋषभदेव निर्वाण धरा पद युद्ध भाव लाज ॥ गगन... पंच महानीर्थो की यात्रा करके हउ । सिंह क्षेत्र प्रतिराय क्षेत्रों पर भी मैं हो याऊ ॥ गगन... तीन लोक की तीर्थ वंदना कर निज घर आऊ । शुद्धातम से कर प्रतीति मैं समकित उपजाऊँ ।। एवन... फिर रत्नत्रय शरण करके जिन मुनि बन जाउं । निज स्वभाव साधन से स्वामी शिव पटाऊँ ॥ गगन... मुनी जब मे जिनवाणी मुनी० भ्रम तम पटल चीर, दरसायो चेतच रवि ज्ञानी ॥ काम क्रोध गज शिथिल भए, पीवत समरम पानी । प्रगट्यो भेद विज्ञान निजंतर, निज प्रीतम जानी ॥ ध्रुवस्वभाव की रुचि अब जागो, छोड़ो मन मानी 1 निज परिणित की अनुपम छवि, अब मैंने पहचानी ॥ ० सुनो

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