Book Title: Jain Pujanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 214
________________ २०२] जैन पूजांजलि घर में तेरे आग लगी है शीघ्र बुझा अव तो मतिमंद । विषय कपायों की ज्वाला में अब तो जलना करदे बंद ।। चम्पापुर, गिरनार, पावापुर, सम्मेद शिखर, निर्वाण क्षेत्र, तीर्थङ्कर जन्म क्षेत्र, अतिशय क्षेत्र, सिद्ध क्षेत्र आदिक श्री जिन धर्माय महा अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। - x शान्ति पाठ इन्द्र नरेन्द्र सुरों से पूजित वृषभादिक श्री वीर महान । साधु मुनीश्वर ऋषियो द्वारा वन्दित तीर्थङ्कर विभुवान ॥ गणधर भी स्तुति कर हारे जिनवर महिमा महा महान । प्रष्ट प्रातिहार्यों से शोमित समवशरण में विराजमान॥ चौतीसों अतिशय से शोभित छयालीस गुण के धारी। दोष अठारह रहित निनेश्वर श्री प्ररहंत देव भारी ॥ तर अशोक सिंहासन भामण्डल सुर पुष्पवृष्टि प्रयक्षत्र । चौंसठ चमर दिव्य ध्वनि पावन दुन्दभि देवोपम सर्वत्र ॥ मति श्रुति अवधि ज्ञान के धारी जन्म समय से हे तीर्थेश । निज स्वभाव साधन के द्वारा प्राप हुए सर्वज्ञ जिनेश । केवल ज्ञान लब्धि के धारी परम पूज्य सुख के सागर । महा पंच कल्याण विभूषित गुरग अनन्त के हो आगर ।। सकल जगत में पूर्ण शांति हो, शासन हो धार्मिक बलवान् । देश राष्ट्र पुर ग्राम लोक में सतत् शान्ति हो हे भगवान् । उचित समय पर वर्षा हो दुभिक्ष न चोरी जारी हों। सर्व जगत के जीव सुखी हों सभी धर्म के धारी हों। रोग शोक भय व्याधि न होवे ईति भौति का नाम नहीं। परम अहिंसा सत्य धर्म हो लेश पाप का काम नहीं ।

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