Book Title: Jain Pujanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 175
________________ जैन पूजांजलि [१६३ द्रव्य पर अणुमात्र भी तेरा नहीं इसलिएपर द्रव्य से मत रागकर । द्रव्य तेरा चेतन आत्म है इसलिए निज आत्म से अनुराग कर ॥ शुद्ध ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनि अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनि अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । जन्म मरण के नाश हेतु प्रासुक जल करता हूँ अर्पण | राग द्वेष परणति अभाव कर निज परणति में करूं रमण ॥ श्री अकम्पनाचार्य प्रादि मुनि सप्त शतक को करूं नमन । मुनि उपसर्ग निवारक विष्णु कुमार महा मुनि को वन्दन ॥ ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनिभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा । भव सन्ताप मिटाने को मैं चन्दन करता हूं अर्पण | देह भोग भव से विरक्त हो निज परणति में करूं रमण ॥ श्री० ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनिभ्यो संसारताप विनाशनाय चन्दनम् नि०। अक्षय पद अखण्ड पाने को अक्षत धवल करू प्रर्पण | हिंसादिक पापों को क्षय कर निज परगति में करूं रमण ॥ श्री० ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनिभ्यो अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा । काम वाण विध्वंस हेतु मैं सहज पुष्प करता अर्पण | क्रोधादिक चारों कषाय हर निज परणति में करूं रमण || श्री० ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनिभ्यो कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा । क्षुधा रोग के नाश हेतु नैवेद्य सरस करता अर्पण | विषय भोग की आकांक्षा हर निज परणति में करूं रमण ॥ श्री० ॐ ह्रीं श्री विष्णु कुमार एवं अकम्पनाचार्य आदि सप्त पातक मुनिभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा ।

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