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जन पूजांजलि
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जाप्य
इस मनुष्य भव रूपी नंदन वन में रत्नत्रय के फूल ।
पर अज्ञानी चुनता रहता है अधर्म के दुखमय शूल ॥ मृग अज, मोन चिन्ह चरणों में प्रभु प्रतिमा जो करें नमन। जन्म जन्म के पातक क्षय हों मिट जाता भव दुख क्रन्दन ॥ रोग शोक दारिद्र प्रादि पापों का होता शीघ्र शमन । भव समुद्र से पार उतरते जो नित करते प्रभु पूजन ॥
* इत्याशीर्वादः ५ ॐ ह्रीं श्री शाति कुन्थु अरनाथ जिनेन्द्राय नमः ।
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श्री बाहुबली स्वामी पूजन जयति बाहुबलि स्वामी जय जय, करू वन्दना वारम्वार । निज स्वरूप का आश्रय लेकर आप हुए भव सागर पार ॥ हे त्रैलोक्य नाथ, त्रिभुवन में छाई महिमा अपरम्पार । सिद्ध स्वपद की प्राप्ति हो गई हुअा जगत् में जय जयकार॥ पूजन करने में पाया हूं अष्ट द्रव्य का ले प्राधार । यही विनय है चारों गति के दुख से मेरा हो उद्धार ॥
ॐ ह्रीं श्री जिन बाहुबली स्वामिन् अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री जिन बाहुबली स्वामिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् ।
ॐ ह्रीं श्री जिन बाहुबली स्वामिन् अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट् । उज्ज्वल निर्मल जल प्रभु पद पंकज में प्राज चढ़ाता हूं। जन्म मरण का नाश करू आनन्दकन्द गुण गाता हूं। श्री बाहुबलि स्वामी प्रभु चरणों में शोष झुकाता हूं। अविनश्वर शिव सुख पाने को नाथ शरण में प्राता हूं। ॐ ह्रीं श्री जिन बाहुबली स्वामिने जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा ।