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जैन पूजांजलि
एक मात्र पुरुषार्थ यही है सम्यक् पथ पर आ जाओ। अंतस्तल की गहराई में आकर निज दर्शन पाओ ॥
द्रव्य कर्म ज्ञानावरणादिक देहादिक नोकर्म विहीन । भाव कम रागादिक से मैं पृथक् प्रात्मा ज्ञान प्रवीण ॥ शासन वीर जयन्ती पर मैं धूप चढ़ा निज ध्यान करू। खिरी० __ॐ ह्रीं श्री सन्मति वीर जिनेन्द्राय अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि। कर्म मल रहित शुद्ध ज्ञानमय, परम मोक्ष है मेरा धाम । भेद ज्ञान को महा शक्ति से, पाऊंगा अनन्त विश्राम ॥ शासन वीर जयन्ती पर फल चढ़ा शुद्ध निज ध्यान करू । खिरी०
ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीर जिनेन्द्राय मोक्षान प्राप्ताय फलम् निःस्वाहा । मात्र वासना जन्य कल्पना है पर द्रव्यों में सुख बुद्धि । इन्द्रिय जन्य सुखों के पीछे पाई किञ्चित नहीं विशुद्धि ॥ शासन वीर जयन्ती पर मैं अर्ज चढ़ा निज ध्यान कह। खिरी दिव्य ध्वनि प्रयम देशना सुन अपना कल्याण करूं। ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीर जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घ्यम् नि ।
जयमाला 8 विपुलाचल के गगन को वन्दू बारम्बार ।
सन्मति प्रभु की दिव्य ध्वनि जहां हुई साकार ॥ महावीर प्रभु दीक्षा लेकर मौन हुए तप संयम धार । परिषह उपसर्गो को जय कर देश देश में किया विहार ॥ द्वादश वर्ष तपस्या करके ऋजु कूला सरि तट पाये। क्षपक श्रेणि चढ़ शुक्ल ध्यान से कर्म घातिया विनसाये॥ स्व पर प्रकाशक परम ज्योतिमय प्रभु को केवल ज्ञान हुपा। इन्द्रादिक को समवशरण रच, मन में हर्ष महान् हुमा ।। बारह समा जुड़ो अति सुन्दर, सबके मन का कमल खिला। जन मानस को प्रभु को दिव्य ध्वनि का, किन्तु न लाभ मिला।