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जन पूजांजलि
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राग आग में जल जल नूने कष्ट अनंत उठाए है।
भाव शुभाशुभ के बंधन में आंसू सदा बहाए हैं । वसु द्रव्य अर्घ जिनदेव चरणों में अपित । पाऊँ अनर्घ पद नाथ अविकल सुख गभित ॥ जय ऋषभदेव जिनराज शिव सुख के दाता । तुम सम हो जाता है स्वयं को जो ध्याता ॥ ___ॐ ह्रीं श्री ऋपभदेव लिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अर्धम् नि० स्वाहा ।
श्री पंच कल्याणक शुभ आषाढ़ कृष्ण द्वितिया को मरुदेवी उर में आये । देवों ने छह मास पूर्व से रत्न प्रयोध्या बरसाये ॥ कर्म भूमि के प्रथम जिनेश्वर तज सरवार्थ सिद्धि प्राये। जय जय ऋषभनाथ तीर्थङ्कर तीन लोक ने सुख पाये ॥ ___ॐ ह्रीं आपाढ़ कृष्ण द्वितिया दिने गर्भ मङ्गल प्राप्ताये ऋपभदेव
जिनेन्द्राय अर्धम् नि० स्वाहा। चैत्र कृष्ण नवमी को राजा नाभिराय गृह जन्म लिया। इन्द्रादिक ने गिरि सुमेरु पर क्षीरोदधि अभिषेक किया । नरक त्रियं च सभी जीवों ने सुख अन्तमुहूर्त पाया । जय जय ऋषभनाथ तीर्थङ्कर जग में पूर्ण हर्ष छाया ॥ ॐ ह्रीं चैत्र कृष्ण नवमी दिने जन्म मङ्गल प्राप्ताये ऋपभदेव जिनेन्द्राय
अर्घम् नि० स्वाहा। चैत्र कृष्ण नवमी को ही वैराग्य भाव उर छाया था। लौकान्तिक सर इन्द्रादिक ने तप कल्यारण मनाया था ॥ पंच महाव्रत धारण करके पंच मुष्टि कच लोच किया। जय प्रभु ऋषभदेव तीर्थङ्कर तुमने मुनि पद धार लिया। ॐ ह्रीं चैत्र कृष्ण नवमी दिने तप मङ्गल प्राप्ताये ऋपभदेव जिनेन्द्राय
अर्धम् निर्वपामीति स्वाहा ।