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जैन पूजांजलि
आत्म स्वरुप अनूप अनूठा इसकी महिमा अपरंपार । इसका अवलंबन लेते ही मिट जाता अनंत संसार ॥
एकादशी कृष्ण फागुन को कर्म घातिया केवल ज्ञान प्राप्त कर स्वामी वीतराग उत्कृष्ट दर्शन ज्ञान अनन्त वीर्य सुख पूर्ण चतुष्टय को जय प्रभु ऋषभदेव जगती ने समवशरण लख सुख पाया ॥
ॐ ह्रीं फाल्गुन वदी एकादशी ज्ञान मङ्गल प्राप्ताये ऋषभदेव जिनेन्द्राय अर्धम् निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ बदी की चतुदशी को गिरि कैलाश हुआ पावन । आठों कर्म विनाशे पाया परम सिद्ध पद भावन ॥
मन
निर्वाण
हुआ ।
मोक्ष लक्ष्मी पाई गिरि कैलाश शिखर, जय जय ऋषभदेव तीर्थङ्कर भव्य मोक्ष
हुआ ॥
ॐ ह्रीं माघ वदी चतुर्दशी मोक्ष मङ्गल प्राप्ताये ऋअभदेव जिनेन्द्राय अर्धम निर्वपामीति स्वाहा । * जयमाला
नष्ट हुए ।
हुए ॥
पाया ।
कल्याण
जम्बू दीप सु भरत क्षेत्र में नगर अयोध्यापुरी विशाल । नाभिराय चौदहवें कुलकर के सुत मरुदेवी के सोलह स्वप्न हुए माता को पन्द्रह मास रत्न तुम आये सरवार्थ सिद्धि से माता उर मङ्गल मति श्रुत अवधिज्ञान के धारी जन्मे हुए जन्म कल्यारण । इन्द्र सुरों ने हर्षित पाण्डुक शिला किया अभिषेक महान ।। राज्य अवस्था में तुमने जन जन के कष्ट मिटाये थे । प्रसि मसि कृषि वाणिज्य शिल्प विद्या षट् कर्म सिखाये थे ।। एक दिवस जब नृत्य लोन सुरि नीलांजना विलीन हुई । है पर्याय अनित्य श्रायु उसकी पल भर में क्षीण तुमने वस्तु स्वरूप विचारा जागा उर वैराग्य कर चितवन भावना द्वादश त्यागा राज्य और
हुई ॥
प्राधार । परिवार ॥
लाल ॥
बरसे ।
सरसे ॥