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जैन पूजांजलि
शुद्धातम के अवलोकन से होती प्रकट शुद्ध पर्याय । द्रव्य दृष्टि जब होती है तो होता भेद ज्ञान सुखदाय ॥
श्री दशलक्षण धर्म पजन उत्तम क्षमा प्रात्मा का गुण उत्तम मार्दव विनय स्वरूप । उत्तम प्रार्जव माया नाशक उत्तम शौच लोभहर भूप ॥ उतम सत्य स्वभाव ज्ञानमय उत्तम संयम संवर रूप । उत्तम तप निर्जरा कर्म को उत्तम त्याग स्वरूप अनूप ॥ उत्तम प्राकिंचन विरागमय उत्तम ब्रह्मचर्य चिद्रूप । धन्य धन्य दश धर्म परम पद दाता सुखमय मोक्ष स्वरूप ॥
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य शौच, संयम, तप, त्याग आकिंचन ब्रह्मचर्य दशलक्षण धर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दशलक्षण धर्म अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दशलक्षण धर्म अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । जल स्वभाव शीतल निर्मल पोकर भी प्यास न बुझ पाई। जन्म मरण का चक्र मिटाने आज धर्म की सुधि पाई ॥ उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव शौच सत्य संघम तप त्याग । आकिंचन ब्रह्मचर्य धर्म के दशलक्षण से हो अनुराग ॥ ___ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दशलक्षण धर्माय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा । वाह निकन्दन चन्दन पाकर भी तो दाह न मिट पाई। राग आग को ज्वाल बुझाने आज धर्म की सुधि आई ॥उत्तम०
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दशलक्षण धर्माय संसारताप विनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। शुभ्र अखन्डित तन्दुल पाकर भी निज रुचि न सुहा पाई। अजर अमर प्रक्षय पद पाने प्राजधर्म की सुधि पाई ॥ उत्तम
ॐ ह्रीं उत्तम क्षमादि दशलक्षण धर्माय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि ।