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42...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन अवलोकन किया जाए तो तत्त्वार्थसूत्र'54, प्रवचनसारोद्धार155 आदि ग्रन्थों में भी इस विषय का निरूपण है। चार अभिग्रह
भिक्षा ग्रहण आदि से सम्बन्धित विशिष्ट प्रतिज्ञा धारण करना और किसी नियम को उत्कृष्ट रूप से अवधारित करना अभिग्रह कहलाता है।
अभिग्रह चार प्रकार से होता है__1. द्रव्य विषयक-आज मैं अमुक वस्तु ही ग्रहण करूँगा, अमुक व्यक्ति आदि के देने पर ही ग्रहण करूँगा। जैसे भगवान महावीर ने कौशांबी में प्रतिज्ञा ली थी-सूपड़े के कोने में रखे हुए उड़द के बाकुले ही भिक्षा में ग्रहण करूँगा। यह द्रव्य अभिग्रह है।
2. क्षेत्र विषयक-ऋजु आदि आठ प्रकार की गोचर भूमियों में से किसी एक का संकल्प ग्रहण कर भिक्षा लूँगा। अपने गाँव अथवा दूसरे गाँव के इतने घरों में भिक्षार्थ प्रवेश करूँगा। जैसे कि भगवान महावीर का क्षेत्र सम्बन्धी यह
अभिग्रह था-दाता का एक पैर देहली के भीतर और एक पैर बाहर होगा तो भिक्षा लूँगा। यह क्षेत्र अभिग्रह है। ___ 3. काल विषयक-भिक्षा काल के आदि, मध्य या अवसान में भिक्षा ग्रहण करूँगा-ऐसी प्रतिज्ञा करना। जैसे-प्रभु महावीर का संकल्प था कि भिक्षा का काल अतिक्रान्त हो चुकने के बाद भिक्षा ग्रहण करूँगा। यह काल अभिग्रह है। ___4. भाव विषयक-अमुक अवस्था में भिक्षा लूँगा अथवा गाता हुआ, रोता हुआ, सम्मुख आता हुआ व्यक्ति देगा तो भिक्षा लूँगा। जैसे प्रभु महावीर का भावाभिग्रह था कि राजकुमारी हो, दासी हो, हाथ-पैरों में बेड़ियाँ हो, मुण्डित सिर हो, आँखों में अश्रुधारा और तीन दिन की भूखी हो उस कन्या के हाथ से भिक्षा लूँगा, अन्यथा नहीं। यह भाव अभिग्रह है।
तुलना- अभिग्रह श्रमण जीवन की अभिन्न साधना है। जैनागमों में एतद्विषयक सुव्यवस्थित चर्चा टीका साहित्य में प्राप्त होती है। बृहत्कल्पभाष्य आदि में इसका सुन्दर वर्णन किया गया है।156 तदनन्तर परवर्ती आचार्यों के पंचवस्तुक157, प्रवचनसारोद्धार 58 आदि में यह चर्चा पढ़ने को मिलती है। आगमिक प्रमाणों से यह भी अवगत होता है कि करण सत्तरी का यह उपभेद