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370...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन जाना पड़ता है। इसी के साथ बाह्य माहौल के कारण दिन में जाना बहुत मुश्किल होता है। ___ कई बार लोगों द्वारा वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए संडास-बाथरूम के उपयोग की हिमायत की जाती है। उनके अनुसार जब पूर्ण रूप से नियमों का पालन संभव ही नहीं है तो फिर खींच-तान कर मात्र परम्परा निर्वाह के लिए नियमों का पालन क्यों करना? ऐसी क्रियाएँ जो वर्तमान सभ्यता के विरुद्ध है, जिससे जैन साधु-साध्वियों की छवि बिगड़ती हो उनमें परिवर्तन क्यों नहीं लाया जाता? किसी अपेक्षा से यह तर्क सही भी है क्योंकि आजकल अनेक ऐसी अप्रिय घटनाएँ घट रही है जिसके कारण स्थंडिल गमन एक चिंतनीय विषय बन गया है।
यदि साध्वाचार की अपेक्षा विचार करें तो संडास-बाथरूम का प्रयोग करना अर्थात अनेक दोषों को स्वीकार करना। परन्तु जहाँ शासन हीनता या शील खंडन का भय हो वहाँ दोषों को स्वीकार कर उनका प्रायश्चित्त करना अधिक श्रेयस्कर है। परंतु जहाँ तक संभव हो साधु को यदि काल वेला आदि का दोष मात्र लगाते हुए बाहर जाना संभव हो एवं शारीरिक स्थिति ऐसी हो कि मुनि इन क्रियाओं पर नियंत्रण रख सकता हो तो अवश्य बाहर जाना चाहिए। प्रमाद, समय बचत या शर्म-संकोच के कारण latring-bothroom का प्रयोग सर्वथा अनुचित है एवं दुर्गतिजनक है। ___ आजकल कई मुनियों द्वारा कुड़े-करकट पर मल विसर्जन किया जाता है तो कई मुनियों द्वारा थैली आदि में जहाँ-तहाँ भी डाला जाता है। कहीं-कहीं पर ठीया आदि बनाकर वहाँ पर मल परिष्ठापन किया जाता है एवं तदनन्तर हरिजनों के द्वारा उन्हें साफ करवाया जाता है। कई मुनियों के द्वारा मात्र ऐसे ही
क्षेत्रों में विचरण किया जाता है जहाँ स्थंडिल योग्य स्थान की प्राप्ति होती हो, किसी अपेक्षा यह उचित है, परंतु इसमें शहरी इलाकों में जिनधर्म क्षणैः क्षणैः समाप्ति पर पहुँच जाएगा। यह सभी अत्यंत ही सूक्ष्म चिंतनीय विषय हैं अत: समय-परिस्थिति आदि के अनुसार विचार करके निर्णय लेना आवश्यक है। जहाँ तक हो संडास-बाथरूम का दोष नहीं लगाने का ही प्रयास करना चाहिए। तदनन्तर भी संभव न हो तो गुर्वाज्ञा अनुसार कार्य करना ही श्रेयस्कर है।