Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि-नियम...373
11. (क) पंचवस्तुक, 414-415 की टीका
(ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 205 12. (क) वही, 416 की टीका
(ख) वही, पृ. 205 13. (क) वही, 416 की टीका
(ख) वही, पृ. 225 14. (क) वही, 418 की टीका
(ख) वही, पृ. 205 (क) वही, 419 की टीका (ख) वही, पृ. 205 (क) वही, 420 की टीका (ख) वही, पृ. 205 (क) वही, 420 की टीका (ख) वही, पृ. 206 (क) वही, 421 की टीका (ख) वही, पृ. 206 (क) वही, 422 की टीका
वही, पृ. 206 (क) वही, 423 की टीका
(ख) वही, पृ. 206 21. (क) वही, 414 की टीका
(ख) वही, पृ. 206 22. आचारांग-अंगसुत्ताणि, 1/1/3 23. सूत्रकृतांग-अंगसुत्ताणि, 9/11 24. ज्ञाताधर्मकथा-अंगसुत्ताणि, 16/16,17,19,21,23 25. अंतकृतदशा-अंगसुत्ताणि, 3/9/88 26. उत्तराध्ययनसूत्र, 24/15-17 27. ओघनियुक्ति, 313,314,296,302 28. बृहत्कल्पभाष्य, 443,444,420-424

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