Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि-नियम...371 सन्दर्भ-सूची 1. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 446 2. अणावायमसंलोए, परस्साणुवघायए। समे अज्झुसिरे यावि, अचिरकाल कयम्मि य ॥
विच्छिण्णे दूरमोगाढे, णासण्णे बिलवज्जिए। तसपाणबीअरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥
(क) उत्तराध्ययनसूत्र, 24/17-18 (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 443-444 (ग) ओघनियुक्ति, 313-314 (घ) पंचवस्तुक, 399-400
(ङ) प्रवचनसारोद्धार, 91/709-710 3. एक्कंदुतिचउपंचच्छक्क, सत्तट्ठनवगदसएहिं । संजोगा कायव्वा, भंगसहस्सं चउव्वीसं ॥
दुगसंजोगे चउरो, तिगट्ठ सेसेसु दुगुणदुगुणा य । भंगाणं परिसंखा, दसहिं सहस्सं चउव्वीसं ॥
गा. 401-402 4. उभयमुहं रासिदुगं, हिट्ठिलाणंतरेण भय पढमं । लद्धाहरासि विहत्तं, तस्सुवरिगुणं तु संजोगा।
दस पणयाल विसुत्तर, सयं च दो सय दसुत्तरं दो अ।
बावण्ण दो दसुत्तर, विसुत्तरं पंच चत्ता य॥ दस एगा य कमेणं, भंगा एगाइ चारणाए य।। सुद्धेण समं मिलिआ, भंगसहस्सं चउव्वीसं ॥
(क) पंचवस्तुक, 403-405
(ख) प्रवचनसारोद्धार टीका, पृ. 206-207 5. अणावायमसंलोए, अणावाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ।
(क) उत्तराध्ययनसूत्र, 24/16 (ख) पंचवस्तुक, 406 (ग) ओघनियुक्ति, 296

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