Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 453
________________ महापरिष्ठापनिका (अंतिम संस्कार) विधि सम्बन्धी नियम...391 को उठाकर नहीं ले जाते हैं, अपितु बैलों के द्वारा, मल्लों के द्वारा अथवा चांडालों के द्वारा श्मशान भूमि तक पहुँचाते हैं। इससे प्रवचन की निंदा होती है। इस भाष्य में शव परिष्ठापक मुनियों का आवश्यक आचार भी बतलाया गया है। जो मुनि इस सामाचारी का सम्यक पालन नहीं करते हैं वे अनेक प्रायश्चित्त के भागी होते हैं।32 मृतक के पात्र आदि की विधि टीकाकारों के मन्तव्यानुसार मृत श्रमण का कोई उपकरण परिभोग योग्य हो तो उसे सागारकृत- यह मेरा नहीं है, आचार्य का है, आचार्य ही इसके ज्ञाता हैं इस भावना से ग्रहणकर आचार्य को समर्पित कर दें। आचार्य के द्वारा वह उपकरण जिसे दिया जाए वह मुनि ‘मत्थएण वंदामि' इस शब्द का उच्चारण करते हुए उसे वन्दन पूर्वक स्वीकार करे। उसके पश्चात वह उसका उपयोग कर सकता है।33 __ मृत साधु के उच्चारपात्र, प्रस्रवण पात्र, श्लेष्मपात्र एवं कुश, पलाल आदि के संस्तारकों का परिष्ठापन कर दें। यदि कोई मुनि रुग्ण हो, तो आवश्यकता होने पर उनके लिए उक्त पात्रों का उपयोग किया जा सकता है। __कोई मुनि महामारी आदि किसी छूत की बीमारी से मरा हो, तो जिस संस्तारक से उसे ले जाया जाए, उसके टुकड़े-टुकड़े कर परिष्ठापित कर दें। उसी प्रकार अन्य उपकरण भी उसके शरीर से स्पर्श हुए हों, उनका भी परिष्ठापन कर दें। वर्तमान में लगभग सभी आम्नायों में मृत श्रमण के पात्रों का उपयोग किया जाता है।34 तुलनात्मक विवेचन भारतीय संस्कृति पुरातन काल से अध्यात्म प्रधान संस्कृति रही है। इसके उत्स में अध्यात्म मूल्यों का सदैव सर्वोच्च स्थान रहा है। महापरिष्ठापनिका अर्थात मृत श्रमण देह का निर्दोष रूप से विसर्जन करना अध्यात्म संस्कृति का ही एक घटक है। ___तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो महापरिष्ठापनिका की विधि सामान्य रूप में बृहत्कल्पसूत्र35, व्यवहारसूत्र, आवश्यकटीका7, बृहत्कल्पभाष्य38, व्यवहारभाष्य39, सामाचारीसंग्रह, सुबोधासामाचारी41, सामाचारीप्रकरण42, विधिमार्गप्रपा43, आचारदिनकर+4 आदि कृतियों में उपलब्ध होती है। गहराई से

Loading...

Page Navigation
1 ... 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472