Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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396...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं 'मा सागारियं' त्ति कटु एगते अचित्ते बहुफासुए थंडिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेत्तए। अत्थि य इत्थ केइ..... परिहारं परिहारित्तए।
व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 7/20 3. पडिलेहणा दिसा गंतए य, काले दिया य राओ य। कुसपडिमा पाणग, नियत्तणे य तण सीस उवगरणे ॥
उट्ठाण णामगहणे, पयाहिणे काउसग्गकरणे य। खमणे य असज्झाए, तत्तो अवलोयणे चेव ।।
आवश्यकनियुक्ति, 1272-1273 की टीका 4. जहियं तु मासकप्पं, वासावासं च संवसे साहू । गीयत्था पढम चिय, तत्थ महाथंडिले पेहे ॥
(क) आवश्यकनियुक्ति, भा. 2, पृ. 93
(ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5499 की टीका 5. बृहत्कल्पभाष्य, 5507 6. दिसा अवरदक्खिणा, दक्खिणा य अवरा य दक्खिणा पुव्वा । अवरुत्तरा य पुव्वा, उत्तर पुव्वुत्तरा चेव ।।33।। (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की टीका भा. 2, पृ. 93
(ख) बृहत्कल्पभाष्य, 1506 7. पउरन्नपाण पढमा, बीयाए भत्त पाण न लहति। तइयाए उदहीमा, नथि चउत्थीए सज्झाओ ।।34।।
पंचमियाए असंखडि, छट्ठीए गणविभेयणं जाण । सत्तमिए गेलनं, मरणं पुण अट्ठमी बिंति ।।35।। (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की टीका, पृ. 93
(ख) बृहत्कल्पभाष्य, 1507-1508 8. व्यवहारभाष्य, 3276-3279 9. (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 35 की टीका
(ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5510, 5511 10. बृहत्कल्पभाष्य, 5513 11. (क) आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 37-40 की टीका
(ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5518-5526 12. (क) दोन्नि य दिवड्डखेत्ते, दब्भमया पुत्तला उ कायव्वा । समखेत्तंमि उ एक्को, अवड्डऽभीए न कायव्वो ।।41।।
आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 41-45 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5527 की टीका

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