Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 459
________________ 13. महापरिष्ठापनिका (अंतिम संस्कार) विधि सम्बन्धी नियम... 397 (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 46 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5530 14. कुसमुट्ठी एगाए, अव्वोच्छिन्नाइ एत्थ धाराए । संथारं संथरेज्जा, सव्वत्थ समो उ कायव्वो ॥ 15. (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 48 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5532 (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 51 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5536 16. (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 49-50 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5533-5534 17. जत्थ य नत्थि तणाई, चुन्नेहिं तत्थ केसरेहिं वा । काव्वोऽत्थ ककारो, हेट्ठ तकारं च बंधेज्जा ॥ आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 51 की टीका 18. विधिमार्गप्रपा - सानुवाद, पृ. 227 19. धर्मसंग्रह, भा. 3, पृ. 573 20. जाए दिसाए गामो, तत्तो सीसं तु होइ कायव्वं । उद्वेतरक्खणट्ठा, एस विही ते समासेणं ॥ (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 52 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5531 21. चिण्हट्ठा उवगरणं दोसा, उ भवे अचिंधकरणंमि । मिच्छत्त सो व राया व, कुणइ गामाण वहकरणं ॥ आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 एवं 53 की टीका 22. वसहि निवेसण साही, गाममज्झे य गामदारे य । अंतरउज्जाणंतर, निसीहिया उट्ठिए वोच्छं ॥ वसहिनिवेसणसाही, गामद्धं गाम मोत्तव्वो । मंडलकंडुद्देसे, निसीहिया चेव रज्जं तु ॥ आवश्यकनियुक्ति, 1273 की 54-55 की टीका 23. (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1273 की 56 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5544 24. गिण्हइ, नामं एगस्स, दोण्हमहवावि होज्झ सव्वेसिं । खिप्पं तु लोयकरणं, परिन्नगण भेय बारसमं ।। (क) आवश्यकनिर्युक्ति, 57 की टीका (ख) बृहत्कल्पभाष्य, 5545

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