Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 444
________________ 382...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन ____ आगमकारों ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि रात्रि भर शव को रखना पड़े तो उनके पास नवीन, शैक्ष, बाल और अपरिणत साधुओं को न बिठाएँ, अपितु जो निद्राजयी, उपायकुशल, महापराक्रमी, धैर्यसम्पन्न, कृतकरण (उस विधि का ज्ञाता), अप्रमत्त और निर्भीक हों वे साधु ही रात्रि भर जागरण करें।11 5. कुशप्रतिमा द्वार- मुनि के कालगत होने पर नक्षत्र का अवलोकन किया जाता है। साधु ने किस नक्षत्र में प्राण त्याग किया है, उस नक्षत्र का विचार करते हैं। • सत्ताईस नक्षत्रों में से पैंतालीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करने वाले किसी नक्षत्र में देहावसान होने पर उस श्रमण की प्रतिकृति के रूप में दर्भमय दो पुतले बनाकर शव के पास रखने चाहिए। नहीं तो दो अन्य साधु दिवंगत हो सकते हैं। पैंतालीस महर्त्तवाले नक्षत्र निम्न हैं- उत्तराफाल्गनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा। ये छह नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त वाले होते हैं। • यदि तीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करने वाले नक्षत्र में देहावसान हुआ हो, तो श्रमण का दर्भमय एक पुतला बनाकर शव के समक्ष रखना चाहिए। पुतला न करने पर एक अन्य साधु कालगत हो सकता है। तीस मुहूर्त वाले पन्द्रह नक्षत्र ये हैं- अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद और रेवती। मृत्यु के समय इनमें से एक भी नक्षत्र हो तो एक पुतला अवश्य करना चाहिए। • पन्द्रह मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करने वाले किसी भी नक्षत्र में मुनि का कालधर्म हुआ हो, तो एक भी पुतला नहीं करना चाहिए। पन्द्रह मुहूर्त वाले छह नक्षत्र निम्नोक्त हैं- शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा।12 ___6. पानकद्वार- शव परिष्ठापन हेतु ले जाते समय सूत्रार्थविद् मुनि पात्र में शुद्ध पानी तथा एक हाथ चार अंगुल परिमाण में समान रूप से काटे हुए कुश ग्रहण करें। जिसके द्वारा स्थण्डिल भूमि की प्रेक्षा की गई है वह दण्डधर मुनि सकोरे में केशर या छाने की राख आदि ग्रहण करें। फिर उक्त दोनों मुनि

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