Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 430
________________ 368...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन निम्न छह मांडला पाठ उपाश्रय द्वार के बाहर (निकटस्थ भूमि) को प्रतिलेखित करने के निमित्त बोलें1. अणाघाडे आसन्ने उच्चारे पासवणे अणहियासे (सामान्य परिस्थिति (खास कठिनाई न हो, उस समय) 2. अणाघाडे आसन्ने पासवणे अणहियासे 3. अणाघाडे मज्झे उच्चारे पासवणे अणहियासे 4. अणाघाडे मज्झे पासवणे अणहियासे 5. अणाघाडे उच्चारे पासवणे अणहियासे 6. अणाघाडे पासवणे अणहियासे निम्न छह मांडला पाठ उपाश्रय से सौ कदम दूर स्थित स्थान को प्रतिलेखित करने के निमित्त बालें1. अणाघाडे आसन्ने उच्चारे पासवणे अहियासे 2. अणाघाडे आसन्ने पासवणे अहियासे 3. अणाघाडे मज्झे उच्चारे पासवणे अहियासे 4. अणाघाडे पासवणे अहिंयासे 5. अणाघाडे उच्चारे पासवणे अहियासे 6. अणाघाडे पासवणे अहियासे तुलनात्मक विवेचन मानव देह अशुचि का भण्डार है। शरीर के अनेक भागों से भिन्न-भिन्न प्रकार की अशुद्धियाँ निरंतर निकलती रहती है। मुनि के द्वारा शारीरिक अशुचि एवं अन्य स्व-अधिकार युक्त अकल्प्य वस्तुओं को निर्जीव स्थान पर विसर्जित या त्याग करने का निर्देश है। इसी क्रिया को शास्त्रीय भाषा में स्थंडिल विधि कहा जाता है। आगम साहित्य से लेकर वर्तमान साध्वाचार सम्बन्धी ग्रन्थों में इसका न्यूनाधिक वर्णन मिलता है। यदि इन ग्रन्थों के आधार पर इसका तुलनात्मक अध्ययन करें तो आगमों में इसका संक्षिप्त वर्णन है वहीं मध्यकाल तक आते-आते पंचवस्तुक, प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रन्थों में इसका अपेक्षाकृत विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है मझे

Loading...

Page Navigation
1 ... 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472