Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 429
________________ स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि-नियम...367 पूर्व प्रतिलेखित सौ हाथ तक की भूमि के सम्मुख करें। आजकल पूर्व-पश्चिमउत्तर-दक्षिण इन चार दिशाओं की ओर मांडला पाठ बोलते हुए छह-छह बार रजोहरण घुमाया जाता है। इस क्रिया के द्वारा चौबीस स्थानों का प्रतिलेखन किया ऐसा मान लेते हैं। मूलत: चौबीस स्थानों की प्रतिलेखना मण्डलाकार के रूप में की जानी चाहिए। चौबीस स्थंडिल भूमियों की प्रतिलेखना के रूप में बोले जाने वाला पाठ निम्न हैनिम्न छह मांडला पाठ संथारा (शयन) के समीप की भूमि को प्रतिलेखित करने के रूप में बोलें1. आघाडे आसन्ने उच्चारे पासवणे अणहियासे (अपवाद की (समीप में) (मलोत्सर्ग के (मूत्रोत्सर्ग (असह्य होने स्थिति के समय) निमित्त) के निमित्त) पर) 2. आघाडे आसन्ने पासवणे अणहियासे 3. आघाडे मज्झे उच्चारे पासवणे अणहियासे 4. आघाडे मज्झे पासवणे अणहियासे 5. आघाडे उच्चारे पासवणे अणहियासे 6. आघाडे पासवणे अणहियासे निम्न छह मांडला पाठ उपाश्रय के अन्दर के भाग को प्रतिलेखित करने के निमित्त बोलें1. आघाडे आसन्ने उच्चारे पासवणे अहियासे (सह्य होने पर) 2. आघाडे पासवणे अहियासे 3. आघाडे मज्झे पासवणे अहियासे 4. आघाडे मज्झे पासवणे अहियासे 5. आघाडे दूरे उच्चारे पासवणे अहियासे 6. आघाडे पासवणे अहियासे 1111111 111111 Mt 11,1 आसन्ने उच्चारे दुई

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