Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 415
________________ स्थंडिल गमन सम्बन्धी विधि-नियम...353 उक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि अनापात असंलोक नाम की स्थंडिल भूमि के चारों विकल्पों में से चौथे विकल्प में आपात एवं संलोक, तीसरे विकल्प में आपात और दूसरे विकल्प में संलोक के भेद-प्रभेद का समावेश होता है तथा इन तीनों भाँगों से युक्त स्थंडिल भूमि अशुद्ध कही गई है। इन भूमियों में स्थण्डिल के लिए जाने पर अनेकविध दोषों की संभावनाएँ रहती हैं। अतएव मल-मूत्र आदि के विसर्जन हेतु अनापात-असंलोक नामक पहला विकल्प ही शुद्ध एवं ग्राह्य है। _ अशुद्ध स्थंडिल भूमि के दोष स्वपक्ष आपात (आवागमन) वाली स्थंडिल भूमि में लगने वाले दोष टीकाकार आचार्य हरिभद्र के मतानुसार जहाँ स्वपक्ष के संविग्न और मनोज्ञ साधु आते हों उसी स्थंडिल भूमि में जाना चाहिए, अन्य भूमि में जाने से अग्रलिखित दोष संभव हैं10___ 1. स्वपक्ष-संयत-संविज्ञ-अमनोज्ञ साधुओं के आवागमन वाली स्थंडिल भूमि में जाने से कलह आदि की सम्भावना रहती है। भिन्न-भिन्न आचार्यों की भिन्नभिन्न सामाचारी होती है। जिस स्थंडिल भूमि में अमनोज्ञ साधु आते-जाते हैं वहाँ यदि नवदीक्षित साधु चला जाये और अमनोज्ञ मुनियों की विपरीत सामाचारी देख लें तो उन्हें असत्य प्रमाणित करने से परस्पर कलह हो सकता है अथवा एकदूसरे की भिन्न-भिन्न सामाचारी देखकर परस्पर में 'तुम गलत आचरण करते हो' ऐसा कहने में आ जाये तो संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। 2. असंविज्ञ (शिथिलाचारी) मुनियों के आवागमन वाली स्थंडिल भूमि में तो कदापि नहीं जाना चाहिए, क्योंकि वे मल शुद्धि के लिए प्रचुर जल का उपयोग करते हैं। उन्हें अधिक जल का उपयोग करते हुए देखकर परीषहों से खिन्न बने हुए शौचवादी, नवदीक्षित आदि साधु के मन में ऐसा भाव आ सकता है कि ये भी साधु हैं और हम भी साधु हैं पर इनका जीवन अच्छा है, अत: इनके साथ रहना चाहिए। ऐसा सोचते हुए अनुकूल अवसर मिलने पर असंविग्न साधुओं के पास जा सकते हैं। 3. जहाँ साध्वीजी का आवागमन हो वहाँ तो मनि को जाना ही नहीं चाहिए, क्योंकि रागवृद्धि, विषय उत्तेजना, मोहोदय आदि दोषोत्पत्ति की संभावनाएं रहती हैं।

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