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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन... 147
15. तिरपणी, घडा आदि की डोरी 16. घड़ा रखने की झोली 17. लूणा (पात्रपोंछन) 18. रजोहरण 19. मुखवस्त्रिका 20. कंबली 21. चद्दर (संख्या में यथावश्यक) 22. पाठा 23. रजोहरण दंडी 24. दो निषद्या - बड़ा सूती ओघारिया एवं छोटा ऊनी ओघारिया 25. दंडा 26. दंडासन 27. आसन 28. संथारा 29. उत्तरपट्टा 30. चोलपट्टा 31. साध्वियों के लिए चोला (कंचुकी), साड़ा आदि। 32. विहार करते समय रजोहरण बांधने का वस्त्र 34. खड़िया (कंधे पर रखा जाने वाला उपकरण ) 35. पॉकेट (पुस्तकादि रखने का साधन) 36. पूंजणी 37. सुपड़ी ( कचरा एकत्रित कर बाहर डालने का साधन) 38. बड़ी पूंजणी (कपाट - अलमारी आदि प्रमार्जित करने का साधन) 39. मात्रक (मल-मूत्र विसर्जन करने का पात्र ) ।
स्थानकवासी - तेरापंथी परम्परा के श्रमण - श्रमणी वर्ग में निम्नोक्त उपकरण देखे जाते हैं
1. पात्र 2. छोटे-बड़े कई प्रकार के पात्र 3. झोली 4. पूंजणी 5. रजोहरण 6. पात्रप्रोञ्छन 7. दंडी (रजोहरण) 8. दो या एक निषद्या ( ओघारिया ) 9. चादर 10. साध्वी के लिए कंचुकी, साड़ा आदि 11. आसन 12. संथारा 13. उत्तरपट्ट 14. विहार के समय अतिरिक्त उपधि को बांधने का वस्त्र खण्ड 15. पुस्तक रखने के साधन आदि ।
दिगम्बर परम्परा में कमण्डलु और मयूर पिच्छी - इन दो उपकरणों की परिपाटी है।
तुलना - इस पूर्व विवेचन के आधार पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि दिगम्बर आम्नाय में उपकरण की संख्या नहींवत है, स्थानकवासीतेरापंथी आम्नाय में अपेक्षाकृत कुछ अधिक है तथा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में वह संख्या सर्वाधिक देखी जाती है।
उपकरणों का ऐतिहासिक विकास क्रम
जैन परम्परा में मुनि के पात्रादि उपकरणों का विकास देशकालगत परिस्थितियों के आधार पर देखा जाता है । आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में श्रमणों के लिए मात्र पाँच उपकरणों का उल्लेख है - वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंछन और कटासन ( चटाई ) 174 इसमें भी कटासन आवश्यकता होने पर मांगकर बिछाये जाने का निर्देश है। आचारांगसूत्र के इसी श्रुतस्कंध में वस्त्र