Book Title: Jain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 399
________________ विहारचर्या सम्बन्धी विधि-नियम... 337 भ्रमण करना अनिवार्य है । भिक्षु एकाकी विचरण कर सकता है, जबकि भिक्षुणी के लिए एकाकी यात्रा करने का निषेध है । उसे किसी गृहस्थ पुरुष या दास आदि के साथ घूमने, अरण्यादि शून्य स्थानों में रहने, अशान्त या अधिक शोरगुल युक्त स्थानों में रहने का भी निषेध किया गया है, उक्त नियमों का पालन न करने पर उसे मानत्त का दण्ड दिया जाता है। सामान्यतः बौद्ध भिक्षु–भिक्षुणी को यात्राकाल में किसी वाहन का प्रयोग करना निषिद्ध है, परन्तु रोगी आदि के लिए वाहन सेवन की अनुमति दी गई है। वे शिविका और पालकी का उपयोग कर सकती हैं। जैन परम्परा में भी अस्वस्थ साधु-साध्वी पालकी, ह्विल चेयर आदि का उपयोग करने लगे हैं परन्तु मूलागमों में इस तरह का कोई विधान नहीं है। आपवादिक स्थितियों में भी किसी तरह के वाहन प्रयोग की अनुमति दी गई हो, पढ़ने में नहीं आया है। जबकि बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियाँ अपवाद स्वरूप वाहन का उपयोग कर सकती हैं। 59 उपसंहार विहारचर्या मुनि जीवन का एक अनिवार्य अंग है। इसके माध्यम से वह व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक दक्षता को प्राप्त करता है। मुनि के लिए आहार, स्वाध्याय, ध्यान आदि जितना आवश्यक है, विहार भी उतना ही आवश्यक माना गया है। मुनि मुख्य रूप से स्थानांतर आदि के निमित्त से विहारचर्या करते हैं। वर्षाकाल में जैन मुनि विशेष जीवोत्पत्ति और उनकी हिंसा की संभावनाओं के कारण चार मास तक एक ही जगह पर स्थिरावास करते हैं तथा शेष आठ मास में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की स्पर्शना करते हैं। प्रश्न हो सकता है कि मुनि यदि ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय में स्थिर होकर आत्म साधना में रमण कर रहा हो, उस स्थिति में वह विहार क्यों करे? इसका समाधान देते हुए कहा गया है कि एक स्थान पर अधिक समय तक रहने से मुनि के मन में उस स्थान के प्रति राग उत्पन्न हो सकता है। विविध प्रकार की भाषाओं, क्षेत्रों एवं कलाओं के ज्ञान से वंचित रह सकता है। विविध तीर्थ भूमियों की स्पर्शना नहीं होगी तथा भिन्न-भिन्न देश के लोगों से सम्पर्क नहीं बनेगा जिससे मुनि व्यावहारिक क्षेत्र में तो पीछे रहेगा ही, साथ ही धर्म का प्रचार-प्रसार भी नहीं कर पाएगा। अत: विहार चर्या को मुनि के लिए परमावश्यक बताया गया है। यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विहार चर्या की प्रासंगिकता पर विचार किया

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