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सचित्र जैन कथासागर भाग - १ देखा। उन्हें देखते ही उसके अन्तर में वैर का दावानल भड़क उठा और क्रोधाग्नि के कारण उसने मुनिवर को चीर कर खा लिया । उन नर-पुङ्गव, मोक्षगामी निर्मल एवं पवित्र आत्मा का उसने क्रूरता पूर्वक संहार कर दिया, परन्तु उन्होंने तो सिंह का अत्यन्त उपकार माना और शुभ ध्यान में काल कवलित होकर वे दसवें देवलोक में देव वन गये। सिंह भयंकर पाप कर्म के बंधन में वन्ध कर पाँचीं नरक में गया ।
नौवाँ भव मरुभूति - दसवें देवलोक में कमठ - पाँचवीं नरक में
दसवाँ भव मरुभूति का जीव तेईसवे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ बना और कमठ का जीव कमठ बना।
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में काशी देश में वाराणसी नगरी थी जहाँ राजा अश्वसेन राज्य करते थे और श्रीमती वामादेवी उनकी पटरानी थी। इस ओर कनकवाहु चक्रवर्ती का जीव दसवें देवलोक से च्यव कर श्री नेमिनाथ भगवान के निर्वाण के ८३७५० वर्ष पश्चात् चैत्र कृष्णा चतुर्थी की अर्ध रात्रि के समय श्रीमती वामादेवी को चौदह स्वप्नों को सूचित करके उनकी कुक्षि में पुत्र के रूप में आया, तब वामादेवी को अत्यन्त हर्ष हुआ । वे आनन्द विभोर हो गईं। तिर्यग्जृम्भक देव करोड़ों रत्नो, स्वर्ण एवं मणिमाणिकों से राजा का भण्डार भरने लगे। पुण्या की पराकाष्ठा का यह चिह्न है।
शुभ दिन, शुभ घड़ी में चौदह राजलोक में शुभ परमाणुओं का प्रादुर्भाव हुआ, चौदह राजलोक में दिव्य प्रकाश जगमगा उठा; उस समय पोप कृष्ण दशमी की मध्य रात्रि में विशाखा नक्षत्र में चन्द्रयोग आने पर भगवान श्री पार्श्वनाथ का जन्म हुआ। जन्म के समय इन्द्र का सिंहासन डोल उठा, तब उसने सात-आठ कदम जिनेश्वर के सामने जाकर शक्रस्तव के द्वारा भगवान की स्तुति की । उस समय हरिणैगमेपी देव को सुघोपा घण्टा वजाने का आदेश दिया । भगवान का जन्माभिषेक करने के लिये करोड़ों देवों के साथ आये हुए इन्द्र ने भगवान की मातुश्री श्रीमती वामादेवी को अवस्वापिनी निद्रा में सुला दिया और परमात्मा का प्रतिविम्ब उनके पास रख कर मूल देह को, अपने पाँच रूप करके कर-कमलों में ग्रहण करके वे मेरू पर्वत पर देवों के साथ जन्मोत्सव मनाने के लिये गये । तीर्थंकर भगवान में अनन्त शक्ति होती है। मेरू पर्वत पर भगवान का जन्मोत्सव मनाकर इन्द्र ने भगवान को पुनः उनकी माता के पास रख दिया और वामादेवी को अवस्वापिनी निद्रा से जाग्रत कर दिया । माता के जाग्रत होने पर सवको भगवान के जन्म की सुचना दी गई। प्रियंवदा दासी ने राजा को मंगल बधाई दी।