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सच्ची माता अर्थात् मुनि अरणिक की कथा
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अरणिक भिक्षार्थ गये थे, परन्तु लौटकर नहीं आये ये समाचार अन्त में अरणिक
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मुनि की माता भद्रा साध्वी को मिले ।
इकलौते पुत्र को लाड-प्यार से पाल-पोस कर बडा करके विरक्त अन्तःकरण से दीक्षित भद्रा ने 'किसका पुत्र और किस का भाई ?" यह सब बहुत सोचा, फिर भी चित्त ठिकाने नहीं रहा ।
उसने स्थान-स्थान पर पूछ-ताछ की। किसी ने बताया 'मुनि यहाँ होकर निकले थे, परन्तु कहाँ गये यह मालूम नहीं है', किसी ने कहा, 'धूप से जलते, प्यास से तड़पते मैंने उन्हें खड़े देखा था परन्तु फिर आगे बढ़ कर वे किस मार्ग से गये उसका पता नहीं है । '
साध्वी उपाश्रय में आई । उसके सामने पूर्व के चित्र खड़े हो गये । 'पुत्र के तथा हमारे सुख के लिए दीक्षा ग्रहण की। पुत्र को क्या संयम कठोर लगा होगा ? क्या वह दीक्षा छोड़ कर चला गया होगा? नहीं, नहीं, खानदान कुल का मेरा पुत्र क्या दीक्षा छोडेगा ? यह कैसे हो सकता है? संसार से अपरिचित उसे क्या किसी भामिनी ने फुसलाया होगा ? हे अरणिक ! तूने कुल कलंकित किया और दीक्षा छोडी । हमारे द्वारा सोचे हुए तेरी आत्मा के उद्धार के बजाय तूने स्वयं को पतन के मार्ग पर मोड़ दिया ?"
अरणिक के अधःपतन में दोपी मैं हूँ अथवा अरणिक ? वह तो विचारा बालक था । मैंने उसके हृदय की परीक्षा नहीं की, उसकी युवावस्था का विचार नहीं किया । माता होकर मैंने पुत्र को संयम - विघातक बना कर भवो भव भटकाया। उसका क्या होगा ? संसार में वह कितने भव संयम - विराधक बनकर निकलेगा? और मैं भी क्या संयमविराधक नहीं हूँ ? अरणिक ! अरणिक ! तूने यह क्या किया ?' इस विचार में भद्रा साध्वी धीरे धीरे होश खो बैठी।
गली-गली, बाजार में और चौराहों पर 'ओ अरणिक! ओ अरणिक! पुकारती हुई भद्रा साध्वी घूमती हैं । बालकों और लोगों के समूह उनके पीछे चलते हैं । मार्ग में जो मिलता है उसे वे पूछती हैं- 'भाई, किसी ने देखा है मेरा अरणिया ? युवक, छोटा, सुन्दर साधु अरणिक था, क्या उसे तुमने देखा है ?' कोई हँसता है तो कोई दूर हट है
जाता
गाँव में कोई साध्वी को देख कर संसार की विचित्रता, तो कोई 'माता-पिता सोचे समझे बिना छोटे बालकों को दीक्षा दें तो और क्या होगा' ऐसी धर्म-निन्दा करते हैं, परन्तु साध्वी तो 'ओ अरणिक! ओ अरणिक !' कहती हुई चिल्लाती हैं । वह प्रत्येक घर की खिड़कियों, झरोखों एवं कक्षों की ओर दृष्टि डालती हैं और यदि अरणिक जैसी आकृति दिखाई दे तो दौड़ कर जाकर देखती है और जब वह अरणिक नहीं