Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 125
________________ ११४ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ मुझे खरीद कर आप पूर्ण करें । मैं आपका दास बनूँगा और जीवन भर आपकी सेवा करूँगा । पशु-पक्षियों के प्रति दया वताने वाले हे महाजनो! जीव-दया प्रेमियो! क्या आप मेरे पर दया नहीं करेंगे?' महाजनों ने कहा, 'वालक! इसमें धन का प्रश्न नहीं है । तू विक कर किसी सामान्य मनुष्य के घर नहीं जा रहा । तू राजा को वेचा गया है। निरर्थक उनका कोप-भाजन कौन बने?' राज्यसभा में भद्रा, अमरकुमार और कोतवाल उपस्थित हुए। राजा एवं पुरोहित को बालक वता कर कोतवाल ने बालक क्रय करने की वात कही। अमरकुमार ने निवदेन किया, 'महाराज! आप समस्त प्रजा के पालक पिता हैं । पिता होकर वत्स की वलि मत दो। मैं निर्दोष प्रजाजन हूँ। आप मुझे वचाओ ।' 'अमरकुमार! मैं बलात्कार तो कर नहीं रहा। मैंने ढिंढोरा पिटवाया था और तुम्हारी माता सहर्ष मुझे सौंपने के लिए आई है । तुम पर सच्चा अधिकार तो उसी का है।' ___ 'सम्पूर्ण प्रजा पर अधिकार रखने वाले राजन्! मुझ पर आपका अधिकार नहीं है, यह मत कहिये, परन्तु आपके न्याय-चक्षु चित्रशाला की महत्त्वाकांक्षा की रज से धूमिल हो गए हैं, अतः वे आपको सच्चा न्याय सूझने नहीं देंगे।' 'राजन्! सन्तान के लिए तरसती माता वालक की स्वयं वलि देने के लिए तत्पर हो जाये, पुत्र के लिए अथक श्रम करने वाला पिता अपने नेत्रों से पुत्र का बलिदान ८ . ५ .it । HTTA - -- [ -:. - - हरिसीमारा अमर कुमार जो कोई मिलता उसे कहता, 'मुझे बचाओ!' परन्तु किसी ने उसे सान्चना नहीं दी!

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