Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 157
________________ १४६ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ पार करता हुआ सुदर्शनपुर की अटवी में आया । वहाँ के रक्षका ने उस घेर लिया । हाथी थका हुआ एवं भूखा होने से शरण में आ गया | सुदर्शनपुर के राजा ने उसे हस्तिशाला में प्रविष्ट कर दिया। ___ जब नमिराज को इस बात का पता लगा तो उसन अपने दूता का सुदर्शनपुर भेज कर चन्द्रयशा राजा से हाथी का लौटाने की माँग की | चन्द्रयशा नं बात स्वीकार नहीं की। अतः इन दोनों राजाओं में युद्ध भड़क उठा । नमिराज ने विशाल सेना लेकर सुदर्शनपुर की ओर प्रयाण किया । चंद्रयशा भी अपनी सेना तैयार करके सामना करने के लिए तैयार हुआ, परन्तु शुभ शकुन नहीं होने के कारण अन्न-पानी का संग्रह करके वह नगर में ही रहा । सुदर्शनपुर के वाहर आमनेसामनं युद्ध के मोर्चे लगाये गये । नमिराज सुदर्शनपुर में प्रविष्ट होने का प्रयास कर रहा था और चन्द्रयशा उसे रोकने का प्रयास कर रहा था। 'महाराज आइये' कह कर अपने शिविर की ओर आती हुई एक प्रौढ़ उम्र की साध्वी का नमिराज ने नमस्कार किया । साध्वी शिविर के भीतर आई और आसन विछा कर वैठ गई । राजा के सम्मुख वैठने पर साध्वी ने कहा, 'राजन! यह युद्ध किस लिए? वड़ भाई ने एक हाथी ले लिवा इस पर मिथिला छाड़ कर इतनी येना लेकर लड़न के लिए AAPANINE ARIHARI HEOLAD H MAN hindi हाथीने स्वर्ण-शृंखला साई दानी, हग्निशाला ताई दी और मिथिला का तहस-नहस करक भागटा.

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