Book Title: Jain Katha Sagar Part 2
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 158
________________ संयोग-त्याग अर्थात् नमि राजर्षि का वृत्तान्त १४७ निकल पड़े? हाथी, प्यादे अथवा समृद्धि क्या साथ आने वाली है ? असार सम्पत्ति के लिए भाई भाई में युद्ध होना क्या उचित है ?' नमिराज से रहा नहीं गया। वह बीच में बोल उठा, 'पूज्य आर्या ! आपने संयम ग्रहण किया है। महाव्रतों को जीवन में उतारा है। आप असत्य नहीं बोलेंगी, यह मैं मानता हूँ, परन्तु आप बार-बार चन्द्रयशा का मेरे भाई के रूप में परिचय क्यों दे रही हैं, इसका मुझे पता नहीं लग रहा है । जग प्रसिद्ध बात यह है कि मैं पद्मरथ राजा का पुत्र हूँ और चन्द्रयशा युगबाहु का पुत्र है। हमारी सातवीं पीढ़ी में भी कोई सम्बन्ध नहीं है | विदुषी साध्वी! क्या आप मानव-मानव को भाई मानने के शुद्ध उदार आशय से तो चन्द्रयशा को मेरा भाई नहीं कह रही है?" 'नहीं, चन्द्रयशा तो तेरा सगा भाई है । चन्द्रयशा के माता-पिता तेरे माता-पिता हैं, इस कारण मैं उसे तेरा भाई कहती हूँ । मानव मात्र के प्रति बन्धुत्व की भावना क्रोध सं धधकतं रणाङ्गण में तेरे अन्तर में इस समय उतरनी अत्यन्त कठिन है । मैं तो सगे भाई के साथ युद्ध करने से तुझे रोकने आई हूँ । ' 'पूज्य! मैं इस विषय में कुछ समझता नहीं हूँ । आप यह बात अत्यन्त स्पष्टता पूर्वक कहें।' राजा ने उत्कण्ठा से सचेत होकर पूछा । साध्वी ने गम्भीरता से कहना प्रारम्भ किया, 'सुन, नमिराज! सुदर्शन नगर में मणिरथ राजा था । उसका लघु 'भ्राता युवराज युगबाहु था। उसकी पत्नी का नाम सती मदनरेखा था। इस मदनरेखा का पुत्र चन्द्रयशा है । जव चन्द्रयशा दस वर्ष का हुआ तब मदनरेखा दूसरी बार गर्भवती हुई । राजा मणिरथ की दृष्टि एक वार मदनरेखा पर पड़ी। उसने उसे वश में करने के लिए आभूषण आदि अनेक उपहार भेजे परन्तु मदनरेखा उसकी ओर आकर्षित नहीं हुई । एक बार युगबाहु एवं मदनरेखा लता-मण्डप में थे। मणिरथ को यह पता लगा । वह अचानक लता - मण्डप में आया। युगबाहु ने विनय भाव से ज्येष्ठ भ्राता को प्रणाम किया, परन्तु मणिरथ ने यह सुअवसर समझ कर नत मस्तक युगबाहु पर तलवार चला कर उसे धराशायी कर दिया। मदनरेखा रुदन करने लगी। रुदन सुन कर सन्तरी दौड़ आये, परन्तु उससे पूर्व मणिरथ भाग चुका था । " करेगा जैसा पायेगा और बोयेगा वैसा काटेगा' इस कहावत के अनुसार विषयान्ध मणिरथ नगर में लौटा, परन्तु उसी रात्रि में उसे विषैले साँप ने काट लिया, जिससे मर कर वह नरक में गया । प्रातःकाल में मंत्रीगण ने युगबाहु के पुत्र चन्द्रयशा को राज्यसिंहासन पर बिठा दिया । करुण क्रन्दन करती गर्भवती मदनरेखा ने अपने पति युगबाहु को तड़पते हुए देखा,

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