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कच्चे सूत का बन्धन अर्थात् आर्द्रकुमार का वृत्तान्त में उपयोग में आने वाले प्रत्येक पदार्थ में जीव होता है । ऐसे अनेक जीवों की हत्या करने की अपेक्षा एक बड़े हाथी जैसे जीव की हत्या करके वहुत दिनों तक भोजन निर्वाह करें तो अल्प पाप लगेगा । अतः वे हाथी की हत्या करके उसके माँस से अपना निर्वाह करते थे। हाथी पर अवलम्वित जीवन व्यतीत करने वाले इन तापसों को लोग हस्ति-तापम कह कर सम्बोधित करते थे। शिष्यों के साथ मुनि ने हस्ति-तापस आश्रम में प्रवेश किया कि तुरन्त दृढ़ वन्धन से बँधा हुआ हाथी बन्धन तोड़ कर मुनि के चरणों का स्पर्श करके भाग गया। महाराजा श्रेणिक एवं अभयकुमार को यह वात ज्ञात हुई। वे तापस आश्रम में आये और मुनिवर के चरणों का स्पर्श करके वोले, 'महाराज! हाथी आपको देखते ही बन्ध तोड़ कर क्यों भाग गया?' मुनि ने कहा, 'राजन! इस बन्धन की क्या शक्ति है? मनुष्य में भक्ति अथवा धर्म की क्रान्ति जाग्रत होती है तब उसके लिए कठिन गिने जाने वाले वन्धन सामान्य वन जाते हैं । इस हाथी ने हमको देखा और उसके हृदय में भक्ति जाग्रत होने पर क्रान्ति उत्पन्न हो गई और ये बन्धन उसने तोड़ दिये परन्तुन दुक्कर वारपासमोअणं गयरस मत्तस्स वणमि रायं । जहाड अक्का वलिएण तंतुणो, तं दुक्करं मे पडिहायमोअण।। हे राजा! हाथी का वन्धन तोड़ना इतना दुष्कर नहीं है जितना कच्चे सूत के तंतु से मुक्त होना मेरे लिए दुष्कर हो गया था।
धर्म एवं भक्ति की क्रान्ति जव हृदय में जाग्रत होती है तब राजऋद्धि अनायास ही त्याग की जा सकती है, वैभव का त्याग किया जा सकता है, महा बन्धन तोड़ा जा सकता है; परन्तु प्रेम-तन्तु के कच्चे तन्तुओं के समान गिने जाते राग-बन्धन मनुप्प से अत्यन्त वल लगाने पर भी टूट नहीं सकते।'
अभयकुमार ने पूछा, “भगवन्! यह कैसे?' 'कुमार यह समस्त प्रताप आपका और आप द्वारा प्रेपित भगवान् की प्रतिमा का हैं। आपने मुझे आर्द्रकुमार को भगवान की प्रतिमा प्रेपित की । मैं दीक्षित हुआ। दीक्षा छोड़कर पुनः गृहस्थ बना | मेरे पुत्र हुआ। बारह वर्ष और उसके कच्चे सूतके धागों से बँध कर रहा। कुमार! दूसरे समस्त बन्धनों की अपेक्षा राग का बन्धन महा बन्ध है, जो अच्छे-अच्छों को पलभर में पतन के गर्त में गिरा देता है और उस राग के वन्धन को तोड़ना अत्यन्त कठिन है।
तत्पश्चात् आर्द्रकुमार भगवान महावीर के पास गये । उन्होंने भगवान के पास विधि पूर्वक दीक्षा ग्रहण की । अनेक मनुप्यों का उद्धार किया । तत्त्व-विमुख होने वाले अनेक व्यक्तियों को समझाकर सच्चे मार्ग पर लगाया और सूयगडांग सूत्र में उनके उपदेश एवं जीवन गुम्फित बने आज भी हम निहार रहे हैं।
(सुयगडांग से)