________________
उपशम विवेक एवं संवर अर्थात् महात्मा चिलाती का वृत्तान्त निराधार हो गया और अधिक कुसंगति में पड़ा।
एक वार सेठानी की दृष्टि चिलाती-पुत्र एवं सुषमा के खेल पर पड़ी । सेठानी ने देखा तो चिलाती-पुत्र सुपमा के साथ कुचेष्टा कर रहा था | सेठानी ने यह बात सेठ को कही। इस पर सेठ ने उसे निकाल दिया। चिलाती पुत्र निरंकुश हो गया। उसे अब कोई कहने वाला अथवा टोकने वाला नहीं था। धीरे-धीरे वह चोरों की संगति में पड़ता गया, मदिरा-पान करने लगा तथा लुटेरों के दल में सम्मिलित हो गया । तत्पश्चात् उसने एक पल्ली वसाई और उसका अधिपति बन गया।
चिलाती पुत्र सुपमा को भूलने का भरसक प्रयत्न करता परन्तु वह उसे बिसरा नहीं सका और सुषमा भी चिलाती पुत्र के अवगुणों का तिरस्कार करती फिर भी किसी भी प्रकार से वह उसे भूल नहीं सकी।
(३) चिलाती अठारह वर्ष का हो गया। उसने अनेक साथी एकत्रित किये। उसकी देह हृष्ट-पुष्ट एवं भव्य थी तथा मन क्रूर था | एक लुटेरे में जो विशेषताएँ होनी चाहिये, वे सव उसमें थीं । एक वार उसने अपने साथियों को कहा, 'आज हमें राजगृह में धनावह के भवन पर लूट करनी है, धन तुम्हारा और उसकी पुत्री मेरी ।' चोरों ने शर्त स्वीकार को।
ठीक मध्याह्न का समय था। चिलचिलाती धूप तप रही थी। इतने में झाड़ी में से चालीस-पचास लुटेरों (डाकुओं) का दल आया और राजगृह के पिछले द्वार से प्रवेश कर वणिको की गली में प्रविष्ट हुआ । लोगों ने अत्यन्त चीख-पुकार मचाई परन्तु नगररक्षकों के आने से पूर्व ही चोर धन के ढेर लेकर और चिलाती सुषमा को लेकर भाग
गया।
सेठ ने कहा, 'धन तो कल प्राप्त हो जायेगा परन्तु लुटेरे मेरी पुत्री को उठा ले जायें यह मैं जीते जी कैरो सहन कर सकता हूँ? मुझे धन की आवश्यकता नहीं है । मुझे मेरी पुत्री ला दो।' नगर-रक्षक दौडे । सेठ ने भी पाँचो पुत्रों को साथ लेकर चोरों का पीछा किया।
चिलाती को सुपमा के प्रति प्रेम एवं मोह है, उसे अनेक बातें पूछने का उसका मन है और सुपमा को भी चिलाती के प्रति मोह होते हुए भी उसे अनेक बातों में सीख देने की उसकी इच्छा है; परन्तु न तो इस समय चिलाती का चित्त ठिकाने है और न सुषमा का | वार बार रूकती सुषमा को वह हाथ पकड़ कर खींचता है, इतने में सुषमा के पाँव में काँटा चुभ जाता है। रक्त की धारा वहने लगी। चिलाती ने तनिक झुक