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उपशम विवेक एवं संवर अर्थात् महात्मा चिलाती का वृत्तान्त
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क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर था जहाँ यज्ञदेव नामका ब्राह्मण निवास करता था, जो व्याकरण, न्याय एवं काव्य में महान् विद्वान माना जाता था । विद्या के साथ उसको विद्या का अहंकार भी था जिसके कारण वह स्थान-स्थान पर कहता कि, 'मुझ पर जो विजय प्राप्त करेगा उसका मैं शिष्य वनूँगा ।'
एक बार एक क्षुल्लक साधु ने उसे जीत लिया । अतः यज्ञदेव ने जैन दीक्षा अङ्गीकार की । वह चारित्र का अच्छी तरह पालन करता परन्तु वस्त्रों की मलिनता की निन्दा करता और कहता कि 'जैन धर्म में सब श्रेष्ठ है परन्तु स्नान करने की आज्ञा नहीं है, यह ठीक नहीं है । '
एक बार वह भिक्षा लेने के लिए निकला और घूमता घूमता वह अपने ही घर आ पहुँचा | पति को देख कर ब्राह्मणी के मन में मोह उत्पन्न हो गया और उसने उन पर जादू-टोना कर दिया। मुनि व्रत में दृढ़ थे जिससे ब्राह्मणी का जादू-टोना चला नहीं, परन्तु दिन प्रतिदिन मुनि की देह क्षीण होती गई। अन्त में वे अनशन करके कालधर्म को प्राप्त हुए । जब उनकी पत्नी को यह पता लगा तब उसे घोर पश्चाताप हुआ । इस कारण प्रायश्चित स्वरूप उसने आलोचना ली और दीक्षा अङ्गीकार करके वह स्वर्ग सिधारी ।
(२)
राजगृह नगर में धनावह सेठ और भद्रा सेठानी निवास करते थे। उनके घर चिलाती नाम की एक विश्वासपात्र दासी थी। दासी को पुत्र हुआ और सेठानी को एक पुत्री हुई | चिलाती दासी के पुत्र को लोग 'चिलाती- पुत्र' कह कर पुकारने लगे और सेठानी की पुत्री का नाम सुषमा रखा। सुषमा एवं चिलाती - पुत्र दोनों साथ खेलते और साथ ही उनका पालन-पोषण होता था फिर भी दोनों के संस्कारों में अत्यन्त अन्तर था । चिलाती - पुत्र के अध्ययन एवं संस्कारों के लिए कोई ध्यान नहीं देता था । वह गाँव में भटकता, लड़कों को पीटता और मार खाते-खाते बड़ा हुआ । सुपमा के लिए सेठसेठानी सव ध्यान रखते और उसके संस्कारों का निर्माण अच्छी तरह करते ।
चिलाती पुत्र जव आठ वर्ष का हुआ तब उसकी माता की मृत्यु हो गई, जिससे वह