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धम्म सारहीणं अर्थात् मेघकुमार का कथानक और भगवान के पास मेघकुमार को दीक्षित कराया।
(३) मेघकुमार अव मेधमुनि बन गये। रात्रि हो गई। समस्त साधुओं के संधारे विछाये गये। क्रम के अनुसार मेघ मुनि का संथारा अन्तिम एवं वह भी द्वार के समीप आया।
रात्रि में दंडासन हिलाते-हिलाते मुनिगण एक के पश्चात् एक 'मात्रा' करने के लिए जाते और लौटते । इस दशा में किसी का पाँव लगता तो किसी का दण्डासन लगता ! संथारा रेत से भर गया । सारी रात मेघकुमार को नींद नहीं आई। उसका मन चक्कर में पड़ गया, 'कल तक लोग मुझे 'खम्मा-खम्मा' करते, वह आज मैं ठोकरें खा रहा हूँ। जो मुनिगण मुझे आदर पूर्वक बुलाते थे, हँस-हँस कर मेरे साथ बातें करते थे, वे आज मुझे शान्ति से नींद भी नहीं लेने देते । जगत सारा वैभव का पूजक हैं। मैं कल तक वैभवशाली था, राजपुत्र था। आज मैं वैभव का परित्याग करने के कारण महत्व-हीन हो गया हूँ । कल प्रातः भगवान के पास जाऊँगा और कहूँगा कि प्रभु! मैं घर जाऊँगा।"
प्रातःकाल हुआ। मेघकुमार ने भगवान को वन्दन किया। भगवान ने उसे कहा, 'मेघ! तुझे रात को नींद नहीं आई और तूने घर जाने का संकल्प किया, परन्तु तूने रात को जो सहन किया उसकी अपेक्षा और भी अधिक कठिन परिषह तूने सहन किये हैं । देख, तीसरे भव में तू मेरुप्रभ हाथी था । जिस वन में तु रहता था उस वन में आग लग गई। तू भागा, परन्तु अचानक नदी के कीचड़ में फँस गया और तेरी मृत्यु हो गई। पुनः तेरा जन्म हाथी के रूप में हुआ और वन में इधर-उधर घूमते-घूमते तुझे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। वन में दावानल लगता है, जिसमें पशु-पक्षियों का नाश होता है। ऐसा पूर्व अनुभव होने से तूने उसमें से बचने के लिए एक योजन प्रमाण वृक्ष रहित मंडल-स्थान बनाया। उस वन में भी अचानक दावानल प्रकट हुआ । वन में से तू तथा छोटे-बड़े सभी पशु वैर-विरोध भूल कर उस मांडले में आकर एकत्रित हुए। चारों ओर अग्नि की ज्वालाएँ धधक उठीं परन्तु तेरे मांडले में आग नहीं पहुँची। अचानक अपने पैर में खुजली होने से उसे खुजाने के लिए तूने पैर ऊँचा किया। वहाँ स्थान सँकरा (संकीर्ण) होने के कारण रिक्त हुए स्थान में एक खरगोश (शशक) आकर खड़ा हो गया। पैर नीचे रखते समय तूने खरगोश को देखा और तुझे दया आ गई, जिससे तूने अपना पाँव उठा हुआ ही रखा।
आग ढाई दिन तक जलती रही। पशु भूखे-प्यासे वहाँ रहे | अग्नि शान्त होने पर पशु चले गये और वह खरगोश भी चला गया । तूने पाँव नीचे रखने का प्रयास किया, परन्तु तेरा पाँव अक्कड़ जाने के कारण भूमि पर नहीं रखा जा सका और तू भूमि