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कच्चे सूत का बन्धन अर्थात् आर्द्रकुमार का वृत्तान्त
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देखकर आर्द्रकुमार को कुछ भी पता नहीं लगा। उसने इस स्वर्णनिर्मित मानव आकृति को आभूषण समझा और विचार करने लगा कि 'इसे भारतवासी गले में बाँधते होंगे अथवा कहाँ पहनते होंगे? है तो यह स्वर्ण, स्वर्ण आभूषण के रूप में सर्वत्र उपयोगी होता है यह बात विख्यात है। ऐसा आभूषण हमारे यहाँ तो नहीं है। मैं मित्र द्वारा प्रेषित उपहार का कैसे उपयोग करूँ ? चल कर, मंत्रियों से पूछें कि यह आभूषण कहाँ पहना जाता है ? परंतु मित्र ने किसी को बताने का स्पष्ट निषेध किया है और उनसे भी गुप्त रीति से भेजा हो तो मैं किसलिये प्रकट करूँ?' आर्द्रकुमार ने विचार-विचार कर प्रतिमा को घुमाया। ज्यों-ज्यों उसके सम्बन्ध में विचार करता गया, त्यों-त्यों उसका मस्तिष्क अधिक चिन्तन - ग्रस्त होता गया । और कुछ ही समय में अचेतन हो गया । यह मूर्च्छा चिन्तन से हुए जातिस्मरण ज्ञान के कारण थी।
(३)
कक्ष बन्द था । वायु की शीतल लहरों से कुछ समय पश्चात् मूर्छा हटने पर वह उठ बैठा और मन ही मन कहने लगा, 'अभय! तू मेरा सच्चा मित्र है। तूने मित्र के सच्चे हित की परीक्षा की । यह तो जिनेश्वर भगवान का तारणहार प्रतिविम्ब है। मैं पूर्व भव में मगध देश के वसन्तपुर गाँव में 'सामयिक' नामक किसान था। मेरी पत्नी का नाम ' बन्धुमती' था । हमें एक बार संसार से वैराग्य हो गया और हम दोनों ने आचार्य श्रीधर्मघोषसूरि से दीक्षा अंगीकार की थी ।
बन्धुमती साध्वियों के साथ विहार करने लगी और मैं धर्मघोषसूरि के साथ विचरने
लगा ।
विहार करते करते हमारा परस्पर मिलाप हुआ । मेरी दृष्टि बन्धुमती की दृष्टि से मिलकर एक हुई, परन्तु उसने तुरन्त दृष्टि नीची कर ली। उसकी दृष्टि में लज्जा, वैराग्य का तेज एवं दृढ़ता का खमीर था । वह तुरन्त चली गई, परन्तु मैं काम - विश्वल हो गया। मुझे अपने पूर्व गृहस्थ जीवन का स्मरण हुआ। मेरे मन में पुनः बन्धुमती का उपभोग करने की उत्कण्ठा उत्पन्न हुई, मैं तप, त्याग भूल गया और पुनः गृहस्थ बनने के लिए तत्पर हो गया ।
यह सब बात वन्धुमती को ज्ञात हो गई। उसके मन में विचार आया कि 'मैं उनके पास जाकर एक बार उन्हें समझाऊँ कि चिन्तामणी रत्न तुल्य यह चारित्र क्यों फेंक रहे हो ? वमन किये हुए अत्र के समान मुझे त्याग कर अब पुनः मेरे साथ भोग-विलास की भावना लाकर आप क्यों अपना पतन कर रहे हो ? त्याग, तप से विशुद्ध बनी देह को पाप-पंक में डुबोकर क्यों मैले (दूषित) बनाते हो ?
मदिरा मानव को उन्मत्त बना देती है उसी प्रकार से विषय भी मानव को पागल