Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 12
________________ सत्त्व अर्थात् महाराजा मेघरथ का दृष्टांत (२३) सत्त्व अर्थात् महाराजा मेघरथ का दृष्टांत १ (१) भगवान शान्तिनाथ के दसवें भव की यह बात है। समकित प्राप्त करने के पश्चात् के भवों की गिनती होती है तदनुसार शान्तिनाथ भगवान के जीव ने प्रथम श्रीषेण के भव में समकित प्राप्त किया था । (२) पुण्डरीकिणी नगर के राजा धनरथ के दो रानियाँ - प्रियमती एवं मनोरमा थीं । यों वे दोनों सौत थी परन्तु उनका प्रेम दो सगी बहनों जैसा था । समय व्यतीत होते वे दोनों गर्भवती हुई और दोनों के पुत्र हुए। राजा ने प्रियमती के पुत्र का नाम मेघरथ और मनोरमा के पुत्र का नाम दृढरथ रखा । मेघरथ एवं दृढरथ का प्रेम बलराम-वासुदेव जैसा था। वे एक दूसरे से अलग नहीं होते थे । कुछ समय के पश्चात् धनरथ राजा ने संयम लिया और सम्पूर्ण राज्य का उत्तरदायित्व मेघरथ को सौंप दिया। ये धनरथ जिनेश्वर भगवान बने । मेघरथ का राज्य अत्यन्त विस्तृत था । उनकी ऋद्धि-सिद्धि का पार नहीं था । देवाङ्गनाओं के समान रानियाँ उनके अन्तःपुर में थीं। मेघरथ को किसी प्रकार का अभाव नहीं था, फिर भी उसे न तो राज्य पर प्रेम था, न रानियों पर और न ही संसार के रागरंग पर ! मेघरथ की राज्यसभा अर्थात् धर्मसभा । वहाँ नित्य पुण्य-पाप के भेद खोले जाते, कर्मों के सम्बन्ध का विचार होता और पूर्व जन्म के संस्कारों की अनिवार्यता समझाई जाती थी । मेघरथ ने ऐसा प्रभाव डाला था कि राज्य सभा में तो राजा एकत्रित होते थे परन्तु मेघरथ पौषध लेते वहाँ भी राजाओं की भीड़ रहती, सामन्तों की भीड़ रहती । वे भी सब मेघरथ के पास पौषध करते और उनकी वाणी श्रवण करते !

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