Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 380
________________ ३६७ जैनकथा रत्नकोष नाग चोयो. धर्मर्नु माहात्म्य देखीने राजा तथा प्रजा सर्वलोक धर्म करवाने आदरवंत थया. देशावका शिकव्रत धनदनी पेठे सर्व जनोयें लीधुं. __ राजायें बहुमान आपीने धनदने सर्व साधर्मिमाहे वडेरो कयो. राजा पण धर्म पामीने धनदने पोतानो गुरु करी मानतो हवो. धनद पण सर्व साधर्मिमांदे अधिकारी थश्ने धर्मनां कार्य सारीरीतें चलाववा लाग्यो. ए क ब सर्वने धर्मने विपे जोड्या. हवे ते धनद अनेक लोकने ते पूर्वोक्त मणीथी उपकार करीने देशावकाशिकव्रत अखंमित अाराधीने बातमे देव लोके देवता थयो तिहाथी चवीने मोदें जाशे एवं धनदनुं कथानक सांन लीने अहो नव्यप्राणी ! तमे धनदनी पेरें देशावगाशिकव्रतने अखंम प्रा राधो तो धनदनी पेरें मोदसुख पामो ॥ इति दशमदेशावका शिकवननेविपे धनद मारीनी कथा संपूर्ण इति दशमव्रत समाप्त ॥ हवे अगीपारमुं पौषधोपवास नामे त्रीजुं शिदाव्रत कहे . जे धर्मनी पुष्टिने धरे तेने पोपध कहिये. ते पोपध अष्टमी आदिदइने पर्वनेविपे करवू जे पौषधनामा व्रतेविशेष ते पोपधने समीरें वसवं अव स्थायें रहे ते पोषधोपवास कहियें अथवा आतमी आदिदेइने पर्वनो जे उपवास तेने पोपधोपवास कहीयें ए पोपधवतनो अर्थ कह्यो. ___ ए पोपधव्रतनुं प्रवर्तन तो स्पष्ट से; एक श्राहार, बीजो शरीरसत्कार, त्रीजु अब्रह्मचर्य, चोथो अव्यापार ए चार प्रकारनुं जे बांमवं ते रूप पो पध कहियें. श्रीसमवायांगनी वृत्तिने विपे श्रीअजयदेवसूरीजीयें एम कडं के पोषधश्वाहार शरीरसत्कार ब्रह्मचर्यव्यापार नेदा वतु पुनरकैकोहिधा देशतःसर्वनेदादेवमष्टोनंगा इत्यादिक घणी व्याख्या करी जे. हवे पूर्वे चार प्रकारना पोसहने देशथी तथा सर्वथी एवा बेबे ने क रतां आठ प्रकारना पोसह थाय तेनां स्वरूप कहीयें बैयें. १ विहां एका सणे तथा नीवी प्रमुख त्रिविहार नपवासें करी जे पोषध करवं ते देशथी आहार पोषध कहियें. अहोरात्र पर्यंत चारे थाहार वळवारूप ते स वथी आहार पोपध कहियें एम शरीरसत्कारादिक सर्व देशथी सर्वथी कहेवा. हवे शिष्य गुरुने पूजे के के जेवारें देशथी पोसह उच्चरे तेवारें सामा यिक उच्चरे के नही उच्चरे? तेने गुरु उत्तर कहे जे के जे सर्वथी पोसह उ

Loading...

Page Navigation
1 ... 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477