Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 404
________________ ३२ जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. पण हुँ तो लेशमात्र दोन नही करुं बलना करनाराने पण दुःख, करवु ते मनेंकरीने पण हुं नही अनुमोउँ हमणां दुं साधुनी पेठे एकलो बुं आश रीर पण महारं नथी तो वली स्वजन अने धनादिक ते महारां क्याथी; ते माटे ते को महारां नथी अने ढुं तेमनो नथी. यतः ॥ प्राणांतेऽपि न नं क्तव्यं,गुरुसादये कृतं व्रत ॥ व्रतनंगोहि फुःखाय,प्राणाजन्मनि जन्मनि ॥१॥ गुरुने साक्षिपणे करेलुं व्रत, प्राणनो अंत थाय तो पण ते नांगq नहि; कारण के व्रतनंगथी अनंत कुःख प्राप्त थाय ने प्राण तो जन्म जन्मनेविषे मलशे परंतु उत्तमव्रत मलशे नहि माटे मारे व्रतनंग करवो नथी. एवी राजानी निःसंगतावाली वाणी सांजलीने सचिवादिक सर्वे बुद्धिये करी जड थया. तेमने कां पण नपायनी सूज पडी नहि. तेवामां तो वै री राजानुं सैन्य पाणीना पूरनी पेठे सैन्यमा श्रावी पोहोतुं तेने कोइ रो कवा समर्थ थयुं नही तेवारे सर्व सैनिको धणी विनाना थइ पोतानोजी व लश्ने दशेदिशायें नाशी गया. राजा पोताना मरणनो अंगीकार करी धैर्य धरी मानने संथारे सागारी अनशन करीने रह्यो. एवामां वैरीना सुनट पण मार मार करता राजा पासें दोडता याव्या एटले धर्मना मा हात्म्यथी शासनदेवतायें उपयोग देने जोयुं तेवारें तिहां आवीने सर्व वैरीना सुनटोना हाथमां जेम उघाडां शस्त्र हतां तेवा शस्त्रसहित सर्वे ने स्तंनी मूक्या. सर्वेनां शरीर रोगेकरी पीडीत थयां थकां जेम वजघर ना संपुटमांहे गोलीया मत्स्य पीच्या थका जेवी वेदना जोगवे तेवी वेदना सर्व जोगवता हवा. तेथी ते महावेदनायेंकरी सर्व याकंद करवा लाग्या. अहो अहो तत्काल पुण्यपापनां फल या नवमांज उदय आव्यां. ते देखी ने देवकुमारराजा एम चिंतववा लाग्यो के घरे अकस्मात् ा सुनटोने टुं थयुं ? राजाने ते सुनटोनी उपर अतिशय करुणा यावी अने चिंतववा लाग्यो के ए बापडा सुःखथी बूटे तो सारं ए सर्व शासनदेवतायें धर्मनुं सान्निध्य कयुं देखाय ने तो हे देव ! महारे निमित्तै परने उःख थाय एवा धर्मना सान्निध्यथी महारे सयुं, मने सांनिध्यनो विस्तार म करो एq.रा जानुं पापनीरुपणुं देखीने शासनदेवी पोताना चित्तनेविषे चमत्कार पा मी थकी वैरीराजा तथा सुनटोने कहेती हवी के तमे सर्वे देवकुमारराजा

Loading...

Page Navigation
1 ... 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477