Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 464
________________ ४५३ जैनकथा रत्नकोष नाग चौथो. लले अने जो समर्थने तो उनव्य तथा बनव्यने केम समाधि थापता न थी. जो कहेशो के योग्यनेज आपवा समर्थ डे पण अयोग्य घनव्य उन व्यादिकने पापवा समर्थ नथी तेवारेतो योग्यताज प्रमाण राखवी तेवारे अजागलस्तननी पेरे वृथा प्रार्थना करवाथी ? हवे गुरु उत्तर कहे ले के सर्वत्र योग्यताज प्रमाण जे अमे बीजो कांई विचार जाणता नथी अमे नियतवादी एकांतवादी नथी अमेतो सर्वनय समू हात्मक म्याघादी ये ते अमे कहीयें बैये के सर्वसामग्री जोश्ये जेम घटनी निष्पत्तिमा माटीनी योग्यता बतेपण कुंजार, चक्र, चीवर दोरो वर दंमा दिक सर्व जोश्ये तेवारे घट नीपजे सहकारी कारण तेहज जो. तेम शहां जीवने योग्यता बनेपण विघ्नना समूहने दूर करवा माटे समाधि वो धिना देवाने विपे देवता पण समर्थ ने.जेम मेतार्यमुनिने पूर्वनवना मित्र देवता यें आवी सुलनबोधी कस्यो तेनीपेठे समकेतदृष्टि देवतानी प्रार्थना बलवती ने. इहां शिष्य आशंका करे ले के सम्यकदृष्टि देवतापासे थी वोधी समाधिनी याचना करतां तेमनुं बदुमान करवू पडे तेथी शं समकेत मनिन न थायके ? गुरुउत्तर कहे ले के ते देवतानी पासेंथी कांश मोद मागता नथी अमे तो एटलुज मागियें यें के धर्मध्यान करतां थकां अमारां विघ्न टालो एप धर्ममां अंतराय टालवानी प्रार्थना डे एटलामाटे देवतानी प्रार्थना कर तां कांई दोष नथी जेमाटे पूर्वे श्रुतधरोनुं ए आचरण के. श्रीयावश्यक चूर्णिमध्ये श्रीवयरस्वामीना चरित्रनेविपे कह्यु बे. यतः ॥ तबय अनासे अन्नोगिरि तं गया तब देवयाए काउसग्गोक सावि अपहिया अणुग्गरं त्ति आणुनायमिति तथा आवश्यकनी काउसग्ग नियुक्तिमाहे पण कर्दा ने यतः ॥ चाउमासिए वरिसे खित्तदेव नसग्गे वित्तदेवयाए अवेयावच गराणं दिऊ थुइ जरकपमुहाणं करंति परिकत्र चाउमासिएवेगे ॥ तथा वृह कल्पनाष्यमां पण कयुं ॥ पारिथ काउसग्गो, परमिहिणंच.कय नमुक्का रो ॥ वेयावञ्चगराणं, दिङ थुश्करकपमुहाएं ॥ १ ॥ तथा चौदशे चुमालीश ग्रंथना कर्ता श्रीहरिजइसरिये पण ललितविस्त रा ग्रंथनेविपे यावञ्चना करनारां देवदेवीनी चोथी थोइ कही ने तेमाटे समकितदृष्टि देवतानी प्रार्थना करवामां कां अयुक्त नथी ॥ ७ ॥ हवे जेणे बारेव्रत लीधां होय तेने अतिचारनुं आलोवq होय अने ते

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