Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 468
________________ ४८६ जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. हीने नंदीने एटले हाइतिखेदे में मातुं कस्युं एवीरीतें कहीने श्रात्मानी सा वे पापनी गर्दा करीने गुरुनीपासें जुगुप्सा गंडा करीने सम्यक् प्रकारें sri को IT तिचार जाणीने तेनें रूडीरीतें मन वचन कायायें त्रिविधें पडिक्कम्या एप डिक्कमल नामा अध्ययन 'पुरुं ययुं माटे चोवीश तीर्थंकरने बांडुं बुं ॥ ५० ॥ पर कहे के ए पडिक्कमसूत्र कोणें कस्युं तेने गुरू कहे म बीजां पडिकमणासूत्र बहुश्रुत स्थविरनां करेलां ने तेम प जावं जेमाटे श्री श्रावश्यक सूत्रनी बृहद्वृत्तिविषे "स्करसन्निसम्म" ए गायाना व्याख्यानमां कत्युं वे जे याचारांगादिक जे अंगप्रविष्टश्रुत बे ते ग धरें कने श्रावश्यकादिक अनंगप्रति ने ते स्थविरकन वे जो कदेशो के श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रने जो याचार्यकृत कहियें तो एनां नाप्यनि युक्त्यादिक पण जोइयें त्यां कहे बे के आवश्यक दशवेकालिकादिक दश शा स्त्र विना शेष बीजां शास्त्रने नियुक्तिनो नाव के खने नववाइ प्रमुख उपांगने तो वली चूर्मिनो पण नाव ले माटे गुं ते सिद्धांत नथी ? श्रावक पडिकमण सूनी विक्रम संवत् १९८३ ना वर्षमां श्रीविजयसिंहसूर तथा श्रीजिनदेव सूरिकृत चूर्णि नाप्यादिक पण बे ने वृत्ति टीकातो वली घणी ने एका माटे श्रुतस्यविरने करवेकरीने सघना व्यतिचारनो विशोधक होजाथी ए श्रावकप डिक्कम सूत्र ते सर्व आवकें निश्चयें खादर जेम साधु पोता नां पडिकमणसूत्र ने यादरे ने तेम भावकें पण पडिक्कमणासूत्र यादर. हां निनिवेश मिथ्यात्वना धली कदाग्रही लोको ते वजी एम कहे केए वंदितु नामे श्रावकनुं प्रतिक्रमणसूत्र ते तो पालथी कोण जाणे को माटे ए मानवा योग्य नथी एवं जे कहे बेतेनी गुंजाली येशी गति यो जेमाटे ते सर्वप्रणीत मार्गने मरडवाथकी अनंतां दुःख पामो यतः ॥ रन्नो श्राणनंगे, इक्कचिय निग्गहो हवइजोए ॥ सङ्घन्नु खाए जंगे, ते सोनिग्गहं लहइ ॥ ॥ जावार्थ :- राजानी श्राशा जांगेथके लोकमic एकवार निग्रह याय एटले दंग याय परंतु जे सर्वज्ञनी याज्ञानो जंग करे तो अनंती वार निग्रह पामे दंग पामे ॥ १ ॥ कोकवली एम कहे बे के श्रावकना वंदिता पडिक्कमणा सूत्रनो वि चार बने तो वेगलो रहो पण प्रथम तो श्रावकने पडिक्कमणुं करवुं ते पण क्यों कयुं बे ? माटे वंदितासूत्रनो विचार तदपि प्रलापमात्र जाणवुं.

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