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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ४५१ नाहरिताबदाः सदा रनिः, स्वर्ग यांति कथं न ते यदि वृथा ज्ञानक्रिये निष्प्रमे ॥१॥तथा ॥ वह्नीनां ज्वलनैः स्त्रियो बहुविधाः क्लेशैर्द रिजाश्चचेन्मुक्ति यांति पुनर्जनाः शमदमझानक्रियाद्यैर्गुणैः ॥२॥ नावार्थ:-क्रियाहीन ज्ञान ते हण्यु अज्ञानयकी क्रिया हणी जेम पांगलो देखे अने आंधलो दोडे ने ते जेम एकथी कार्यसिदिन थाय बेदु मलवाथी वांलित कार्य थाय माटे झानक्रिया संयुक्त होय तो मोदरूप कार्य थाय ॥१॥ तथा पशु नग्न फरे , जलचरजीवं जलमांहे रहे , वटादिक जटाधरे ने, नोज पत्रवृद वल्कल पहेरे में तथा बालक हस्तो, श्वानादिक राखमांहे पड्या रहे , वली अग्निने सदाइ लोक,बाले , सिंह, पन अश्व सर्वदा दोरिये बांध्या रहे जे तो ते स्वर्गे केम नथी जाता? तेथी जो मोद थाय तो ज्ञान क्रिया ए निष्प्रमाण गणाय ॥ १ ॥ घणी स्त्री अग्रीमा बले ने तथा दरि ही लोको घणा प्रकारना क्लेशोने पामे डे परंतु ते मुक्तिने पामता नथी मुक्ति तो मात्र शम दम ज्ञान अने क्रिया आदि गुणेकरीने प्राप्त थाय ॥२॥
श्रीपाचारांग सूत्रमांहे कर्तुं ने, यतः ॥ आणाणाए एगे निरूवाणा एवंते तावहोत्ति तो अधिष्टायिक सम्यक्दृष्टि एवा देवता देवी जे धरणे इ अंबिका यदादिक ते मुजने समाधिपणुं बापो जे चित्तनी स्थिरता ते समाधि कहिये ते समाधि सकलधर्मनुं मूल ने जेम शाखानुं मूल स्कंध ठे, प्रतिशावानुं मूल शाखा ,फल, मूल फूल , अंकुरनुं मूल बीज ने तेम धर्मनुं मूल समाधि . चित्तनी स्वस्थता विना जेटलां रूडाधर्मनां अनुष्टान ते सर्व कष्टनूत जाणवां. प्रायः व्याधिपीडायेंकरी समाधिनो नाश थाय ने तेमाटे ते व्याधि पीडानो रोध करवो तेनो हेतु उपसर्गनिवारण डे ते न पसर्ग निवारवानेमाटे समकेतदृष्टि देवदेवीनी प्रार्थना करवी ते प्रार्थना बोधि एटले परलोकें श्रीजिनधर्मनी प्राप्तिने अर्थे . यतः ॥ सावयघरंमि जंहूऊ चे नाणदसण समे ॥ मित मोहिय मरणो, मा राया चक्कर हिवि ॥ १ ॥ नावार्थ:-श्रावकना घरने विपे दास थावं ते पण नखं जे माटे तिहां ज्ञान दर्शनसमेत थवाय परंतु मिथ्यात्वें मोहितमतिवालो एवो राजा तथा चक्रवर्तिपणुं पण मुजने थाशो मां ॥१॥
इहां कोश्क . एम कहे के समकेतदृष्टि देवदेवी समाधि बोधी या पवाने समर्थ डे के नथी ? जो समर्थ नथी तो तेनी प्रार्थना करवी निष्फ