Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 441
________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. शए देखी तेनां करेलां गीत गान नाटकादिक देखी तथा नाना प्रकारना स्त्री पुरुषोयें अत्यंत चतुरायें करी तथा अतिशय कलायेंकरी अञ्जत शोना बनावी डे ते देखीने तथा अति कोमल सुललित एवा कोई मृदंगादिक अने वाजिबना शब्द सांजली तथा चतुर विवेकी एवा नरनारीना अनेक संघ आवी नवनवां वस्त्रानूषण माला पहेरीने गीत गान वाजिबना नाद नाटकादिक करता एकेकथी आगल पंडतां देखीने एवी अनेक प्रकारनी पो तानी आगल लोकोयें करेला शोना सत्कार सन्मान वंदनादिक बहुमान देखीने तथा सुविहित गीतार्थ आचार्यादिकें प्रारंनेली वारंवार सिहांत पु स्तक वाचनादिक बहुमान सहित धर्मदेशनादिकने देखीने तथा वारंवार रूडा गुणिजनो धर्मधुरंधर धर्ममां प्रवीण एवा साधर्मिनाइन धर्मी जीवो नी श्रेणियोयें करेलां अत्यंत गुणग्राम पूर्वक बहुमान इत्यादिक माहात्म्य देखीने मनमां चिंतवे जे हुँ घणोकाल जीवतो रहुं तो घणाकाल सुधी म होत्सव थाय ए, जे संलेषणामां चिंतवq ते जीवितासंसप्रयोग अतिचार. ४ तथा कोश्क कर्कशदेत्रमा अनशन करे थके पूर्वे कही एवी पूजा बहुमानादिकें रहित थवाथी दुधादिक आर्तिथी पीडित थको एवं चिंतवे जे तुरत मरण करूं तो साहं ते मरणाशंसप्रयोग अतिचार जाणवो. ५ च शब्दथकी कामनोगारांसप्रयोग अतिचार जाणवो तिहां काम ते शब्द रूप, जोग ते गंध रस स्पर्श यादिनी वांगनो प्रयोग एटले मुजने या तपना प्रनावथकी परनवें रूप सौनाग्यादिक थान ते पांचमो अतिचार. मरणांतने विपे डेली अवस्थायें ए पांच अतिचार मुजने म होजो उप लणथकी सघलाए धर्मना अनुष्टाननेविपे इहलोकादिक सर्व आशंसा बांझवी यतः ॥ गोइहलोगज्याए आयारम हिगिजाणो परलोगध्याए आ यार महितिजा जोकित्तिवप्लसदसिलोगध्याए यारमहिहिजा नन्नब अ रिहंतेहिं देशहिं आयारमहितिजा तथा ॥ आशंसया विनिर्मुक्ती, अनुष्टानं समाचरेत् ॥ मोदे नवे च सर्वत्र, निःस्टहोमुनिसत्तमः ॥ १ ॥ नावार्थःशहलोकनेअथ आचारधर्म न करे, परलोकनेअर्थे आचारधर्म न करे, कीर्ति वर्ण शब्द प्रशंसवानेयर्थे आचारधर्म न करे, बीजे पण क्या न करे परंतु अरिहंतरूप हेतुयेंकरी आचारधर्मप्रत्ये करे, तथा मोदने विपे सर्वत्र निःस्टह मुनिमांहे उत्तम ते,याशंसा वांगयें रहित सघखं अनुष्टान याचरे.

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