Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 439
________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. हवे साधुने विषे संविभाग याश्रयीने जे कां करवुं घंटे ते न क होय ते पडिक्कमवाने गाथा कहे बे. ४२७ सासु संविभागो, न क तव चरण करण जुत्तेसु ॥ संते फासुप्र दाणे, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ ३२ ॥ अर्थ : - ( तव के० ) तप ते बाह्याभ्यंतर रूप बार दें जावं तेनी वि शेष व्याख्या महारा करेला अर्थकौमुदीनामा ग्रंथथी जाणजो तथा ( चरण के० ) चरणसीतेरी ते पांच महाव्रत, दशप्रकारनो श्रमणधर्म सत्तरप्रकारनो संयम, दशप्रकारनो वैयावच्च, नवप्रकारें ब्रह्मचर्यनी गुप्ति, ज्ञान दर्शन खने चारित्र, बारप्रकारनुं तप, चारप्रकारना क्रोधनो निग्रह, ए सीतेरनेद जाणवा ते सर्व जेद सुलन बे परंतु संयमना सत्तर प्रकार ते मांहेला एकतो पांच याश्रवथी विरम, पांच इंडियनो निग्रह कर वो, चार कषायनो त्याग खने मनदं वचनदं तथा कायदंग ए त्रादंम नो त्याग ए सत्तरनेद ने अथवा पृथ्वीच्यादिक पांच यावर तथा बेंड़ी तेंड़ी चौरिं ने पंचें एवं नव खने दशमो अजीवसंयम तिहां पृथिव्यादिक नवप्रकारना जीवोनी रक्षा करी. तेमज दशभुं प्राणीना उपघातना हेतुरूप एव। जे पुस्तकप्रमुख प्रजीव वस्तु तेनुं जेवुं मूकवुं ते जीवयत्नथी जय पाये मूकवुं जेवुं, जो ते पुस्तकमांहे महिका मांकड प्रमुख चंपाइ पीलाइ जाय तेना रुधिरेकरी अक्षर फीटी जाय तथा हिंसा थाय माटे डुषमकाल ना दोपथी ज्ञानगुणेंहीन एवा जे शिष्यादिक तेना उपकारार्थे जयला ये प्रतिलेखनाप्रमार्जनपूर्वक पुस्तकादिक लेवुं मुकुवुं ते जीव संयम जा rat एवं दशप्रकार थया. अगियारमो प्रेहासंयम ते वैसवा उठवादि जे कार्य करते पडलेही पुंजीने कर. बारमो उपेक्षा संयम ते जेको सं यमथक पडतो होय अथवा संयमनेविषे सीदातो होय तेने सहाय देवो तेरमो प्रमाना संयम ते श्रावक बेठेयके रजोहरणेंकरी पगनी रज पुंज वी. चौदमो पारिष्टानां संयम ते जे कां परठववुं पडे ते विधिर्येकरी पर aag. पन्नारमो मनसंयम ते मनने विषे चेतन तथा अचेतननी उपर शेह निमान- इर्ष्यादिक सर्व बांमीने धर्मध्यानादिकनुं चिंतवनुं. सोलमो वचन संयम ते किरा कठणवचननुं बोलकं बांकीने नाषा सुमतियें गुनना

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