Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 445
________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ४३३ मनेंकरी मनना अतिचार पडिक्कमुं बुं, एम सर्वव्रतना अतिचारथकी निव “ . यतः ॥ मनसा मानसिकं कर्म, वचसा वाचिक तथा ॥ कायेन का यं तह, निस्तरंति मनीषिणः ॥ १ ॥ ३४ ॥ ए सामान्यथकीत्रणयोगप्रत्ये पडिकम्या हवे विशेषथी तेज पडिक्कमे बे. वंदण वय सिरका गा, रवेसु सन्ना कसाय दंमेसु ॥ गुत्ती सु अ समिश्सु अ, जो अश्वारो अतं निंदे ॥३५॥ अर्थः- वंदन वे प्रकारचें एक देववंदन अने बीजुं गुरुवंदन ते वली एके कनां बे प्रकार ने एक इव्यथी अने वीजुं नावथी तिहां इव्यथ। देववंदन पालकने थयुं अने नावथी देववंदन साम्बकुमारने ययुं, व्यथी गुरुवंदन वीरा शालवीने थयुं अने नावथी गुरुवंदन श्रीकृष्णवासुदेवने थयुं. इव्य थी देववंदनना दशत्रिक आदिक २०७४ बोल कह्या अने व्यथी गुरुवं दनना भए वोल कह्या ले ते सर्व देववंदन अने गुरुवंदन नाष्यथी जाणवां. तथा (वय के० ) व्रत ते अणुव्रत आदि पोरिसी प्रमुख पचरकाणरूप नियम अथवा (सिरका के ) शिक्षा ग्रहण आसेवनरूप वे प्रकारे तिहां प्रथम ग्रहण शिक्षा ते, सामायिकादिक सूत्र अर्थना ग्रहणरूप जाणव। जेमाटे आगममां कडं दे ॥ सावगस्स जहन्नेणं अह पवयण माया नक्कोसेणं बड़ीवणिया सुत्त अबवि पिसणाऊयणं न सुत्त अब उपुण ननावेणं सुणइति ॥ नावार्थः-श्रावकने जघन्यथी अष्टप्रवचन मा तानुं अध्ययन नणअने नष्टुं बजीवपीया अध्ययन सूत्रथी अने अर्थथी नणवू पण पिंमेसणा अध्ययनसूत्रथी नहीं परंतु अर्थथीज नणदुं वली उन्नाकरी धर्म सानले ॥१॥ तथा आसेवन शिदा तो नवकार उच्चार करतो जागे इत्यादिक श्रावकदिनकृत्यलक्षण जाणवू ॥ तथा गाय ते जात्या दिकनो गर्व जाणवो यतः ॥ जा कुल रूव बल सुअ, तव लान सिरिई अहमयमत्तो॥ एयाइंचिय बंध,असुहाई बदुई सं सारो ॥१॥ नावार्थ:- जातिमद,कुलमद,रूपमद,बलमद, श्रुतमद अर्था त् ज्ञानमद,तपमद,लानमद,लक्ष्मीमद ए बात मकरीने मत्त थयेलो जीव संसारनेविषे घणां.अशुनकर्मने बांधे ॥१॥ इहां मेतार्य,हरिकेशी चंमाल,म रीचि प्रमुखनां दृष्टांत जाणवां. अथवा त्रण गारव ते दिगारव रसगारव

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