Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 440
________________ Hशत जैनकथा रत्नकोष नाग चोयो. पामा प्रवर्त. सत्तरमो कायसंयम ते कायाथकी धावन वलनादिक बांझीने शुनक्रियामा प्रवर्तवु ए सत्तरजेद संयमना प्राणीनी दयारूप जाणवा. तथा ( करण के० ) करणसीतरीना सीतेर नेद ते चारप्रकारनां पिंक जे आहारादिक लेवां तेनी विशुद्धि, पांच समिति, बार नावना, बार प डिमा, पांचयिनो निरोध, पञ्चीश प्रतिलेखना, वणगुप्ति तथा इव्यथी, देवथी, कालथी अने नावथी ए चारप्रकारना अनिग्रह एवं सीतरनेद करण सीतेरीना प्रवचनसारोबारादि ग्रंथमां प्रसिद्ध छे. __ एरीतें तप तथा चरण करणनी सीतेरीयें युक्त एवा साधुने विपे बती योगवायें फासु एपणीय एवा अन्नादिकनो संविनाग न कस्यो होय ते आत्मानी साखें निं . गुरुनी साखे गई बूं. यहां शिष्य पूजे जे के स्वा मी! चरणसीतरी करणसीतरीमांहे तप आवी गयुं तो वली तप जुडं शा माटे कयुं ! तेने गुरु उत्तर कहे जे के तपस्यायकी निकाचितकर्म दय थाय ने तेमाटे तपनुं प्रधानपणुं देखाडवाने अर्थे जुदो कह्यो. यतः ॥ कडाणं कम्माणं, पुविंचिन्नाणं उपडिकंताणं॥वे मुरको नथी,अवे तवसा वाजो सश्ता॥नावार्थः कस्या कर्मने नर्वे नोगव्यां न होय,बालोयां न होय.वेद्यां न होय तो ते विना मोद नथी माटे ते कर्मनो तकरी क्य करे ॥३॥ इति श्रीतपागनीयामप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ती शिदाव्रताधिकारे चतुर्थोऽ धिकारः संपूर्णः ॥ इति श्रीश्रावकना प्रतिक्रमणासूत्रना वालावबोधनेविपे चोथो अधिकार संपूर्ण थयो । ए बारव्रतनो अधिकार संपूर्ण थयो. हवे संनेषणाना अतिचार पडिक्कमवाने गाथा कहे जे. ॥ इहलोए परलोए, जीवीय मरणेअ आसंसप गे॥पंचविदो अश्आ रो,मा मद्यं दुळ मरणंते॥३३॥ अर्थः-शहां प्रयोग शद पांचे अतिचारमा जोडवो तिहां इहलोक ते मनुष्यलोक एटले हांथी मरीने राजा शेठ सेनापति आदिक थावाना निलाषना चिंतनरूप व्यापार करवो ते प्रथम इहलोकारांसप्रयोग अतिचार. २ देवेंशदिकनी पदवी वांबवी ते बीजो परलोकाशंस प्रयोग अतिचार. ३ कोकें अनशन करेथके अनेक ग्राम नगरना लोक. पोतपोतानी ६ लेने वांदवा थावे थके ते संघ मली निरंतर नवनवा महोत्सव करता

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