Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 402
________________ ३० जैनकथा रनकोप नाग चोथो. ता एवा प्रज्ञाकरशेठ यादिक. गग पर्वनेविपे निरंतर परिपू । पोपधनुं बाराधन करता थका थात्माने धन्य मानता हवा. वली धन्यशेत अने तेनी स्त्री ते तो महर्दिक बतां पुत्रना योगथकी दारिश्पणानां पुःख पाम्यां थकां पुःखगर्नितवैराग्यथकीज दीक्षा लश्ने अ नुक्रमें मोक्षनगरना राज्यने नजनारां थयां,एम घणा जीव धर्मनां सहाया दिक कर्नव्यनेविषे उजमाल थइने धर्ममांहे, पण पोषधना सांनिध्यनेविपे यम करता हवा. व्यंतरी पण रुडीरीते समकेत पामीने सम्यकदृष्टि जी वोने धर्ममां सांनिध्य करवाने विपे सावधान थइ. हवे धन्यशेठनो दीकरो प्रेतकुमार तो नथाविध अर्थात् तेता प्रकारना दुःखेंकरी दग्ध थयो थको पाबले नवें धर्मनो अंतराय करवाने लीधे जो के हमणां तेने रूडीरीतें धर्मनी प्रेरणा करी तो पण पोतें पोपधादिक ध म करवाने सर्वथा प्रकारें जमाल न थतो हवो. राजादिके घणो सभजा वीने धर्मनो नत्साह वधारवा मांमयो तो पण जेम नंटने शख रुचे नही तेम लगार मात्र धर्मनेविपे रुचि थ नही. साहामो पोपधादिकनधि प वहन करे अहो श्रावकना कुलनेविपे अवतरी तेवी सामग्री प्राप्त थऽ ता पण तेने धर्म आराधवो पुष्कर थयो. जेम वर्षाकालें अथवा वसंतने विपे सर्व वनराजि नवपन्नव थाय पण केरडामां पान न थाय तेम इहां जो 'पण घणा जीव धर्म आराधक थया तो पण प्रेतकुमारने लगार मात्र पण धर्म प्राप्त न थयो ॥ यतः ॥ पत्ते वसंतमासे, रिदिपावंति सयन वएरा॥ जे न करीरे पत्तं, ताकिं दोसो वसंतस्स ॥ १ ॥ __ पड़ी देवकुमार तेने बलात्कारें पोपध करावे एम जाणीप्रेतकुमार विचाख्यं के जो दुश्हां रहीश तो ए राजादिक मुजने बलात्कारें धर्म करावशे,माटे ३ हाथी बीजे गाम जाउं तो सारं एम चिंतवी राजाना नयथी ते नगर बांकी बीजे नगरेंज रह्यो एम सर्वप्रकारें मांगलिक कल्याणकारि सर्व वांबितसुख नोथापनार एवो धर्म तेहथी वेगलो थयो, जेम अविनीत शिष्य विद्याथी वेग लो थाय तेम वेगलो थयो पढ़ी ते सर्व प्रकारें छःखी दारी रोगिमाहे मुख्य रोगादिके पीडित थ लोकना परानवादिक फुःख नोगवी मरण पामी तिर्य चथयो तिहांथी नरकें गयो एम घणा नव नरक तिर्यचना करशे अने घ

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