Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 428
________________ ४१६ जैनकथा रत्नकोष नाग चोथो. रीने पनी कपटेंकरीने गुणधरने कयुं हे वत्स ! तुं महारी पासें थाव्य त हारी शिखा बांधु ते सांनती गुणधर,परिव्राजकपासें श्राव्यो तेवारे परिव्राज के दृढपणे गुणधरनी चोटली पकडीने उंचो नपाज्यो अने अमिना कुंम मांहे तेने नाखवा लाग्यो तेवारें गुणधर पण तेने कपटी अनार्य जाणीने बलबल करीने परिव्राजकना हाथथकी लूट्यो. पड़ी महाको उर्वर थया एवा ते वेदुजण योध सुनटनी पेठे लडता हवा. परिव्राजक जाणे जे ह मणां दुं था गुणधरने अग्निना कुंझमां नाखीश अने गुणधर जाणे जे ह मणां ढुंए परिव्राजकने अग्निना कुंममा नारखीश. एम वेदुजणने आकरो क्लेश थयो जाणे वे प्रेतज लडता होयनी ! एम शोर बकोर करता जय ब्रांतथका ते वेदु जण बम पाडवा लाग्या. एवामां महापुरीनगरीथकी राजानो पुत्र तेजसार एवेनामे ले ते आहेडो करवामाटे रात्रिय वनमा रहेलो के तेणे ते बुंम सांजली ते महापराक्रमी ने माटे धनुषवाण चडावीने उतावलो त्यां पार्व। पहोतो केम के क्षत्रिय होय ते बुंम सांजलीने वेशी न रहे. पबीते तेजसार कुमार श्रावीने प रिव्राजकथकी गुणधरने जूदो करयो अने गुणधरना मुखथकी लडाइनो व्यति कार सांजली महाकोपायमान थ परिव्राजकने उपाडी अमिना कुंममाहे नाख्यो. जे उष्ट होय तेने शिक्षा देवी अने सऊन, रहाण करवू. एवं त्रि यर्नु बिरुद ले पनी पारिव्राजक अग्निमां पड। सोनानो पुरुष थयो. जे अन्यनुं चिंतव्युं ते पोताने थयुं अकस्मात् सोनाना पुरुषना लानथकी राजकुमार प रम आनंद पाम्योथको नूमि खोदीने तेमां ते पुरुषने नंमायो. तेनी उपर नी शान कयुं गणधरने कांक मार्गमां जवा संबल खरची आपी विदाय कस्यो. गुणधर पण मार्गसंबल ले। तुष्टमान थने त्यांची आगल चाल्यो अ नेक धननपार्जवाना उपाय चिंतवतो विकल्प करतो विचारतो हवो के म हारुं महोटुं नाग्य जागतुं .जे ढुं जटिलना हाथथकी लूटो बने विकट सं कटथकी नगयो. वली मार्गयोग्य संबल पण मन्युं तो हुँ एम जाणुं के हजी पण ढुं घणुं धन पामीश. हुं हमणां जश्ने व्यापार करी लक्ष्मी उपा र्जीश दैव अनुकूल होय तो झुं न नीपजे! एवं विचारी पोताना नगरन णी चाल्यो जाय डे एवामां मार्गमा एक सिमपुरुष मल्यो. तेंनी साथे गो प्टी करतां कोक नगरना उद्यानपासे सनिवेश के तिहां याव्यो. एटले

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