Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सहित. ३७१ वा निशिथचूर्णिमां जे उद्देशी कयुं ते सामायिक करवावालो पण जोजन करे. परंतु ते पोषध सहित सामायिकनी अपेक्षायें संनवीयें वैयें. अने पोषध र हित सामायिक तो एक मुहूर्त्तमात्रनुं छे तेमां पूर्वाचार्यनी परंपरायें थाहार लेता नथी श्रावक पडिक्कमणासूत्रनी चूर्णिमां एम कर्वा ॥ जदिदेसाहा रपोसहि तो जत्तपास्त गुरु सरिकथं पारा वित्ता आवसियं करित्ता इरिया समिइ एगंतुवरं इरियाव हिथं पडिक्कम आगमणं आलोयणं नोयणं करे चे इए वंदे तसंमासयं पमङित्ता पायपुढणे निसिप्रश्नायणं पमऊ जहो चिएप जोयणे परिवेसिए पंचमंगलमुच्चारे सरेश पञ्चरकाणं त वयणं पम कित्ता असरसरं अबचवं अऽयमविलंबिय अपरिसाडियं मणवयण काय गुत्तो लुंज साढूवनवउत्तो ॥ १ ॥ जाया माया ए नुच्चा फासु अ जलेण मु हसुदिकालं नवकार सरणेता देवेवंद वंदणयंदाचं संवरणंकाएं पुणो विपोसहसालाए गंतु सजाइतो चित्ति ॥ नावार्थः-जेवारें देशथी याहार पोसह करे तो नातपाणीने गुरुनी साखें परावीने आवस्सहि कही ईर्यास मिति शोधतो घरें जश्ने ईरियावहि पडिक्कमे गमणागमण बालोश्ने नोज न करे. चैत्यवंदन करे, तेवार पनी संमासा पोते प्रमार्जना करे पोंबणा नपर बेशी नोजनने पूंजे पनी जे उचितनोजन होय ते पीरसे थके मुख यो नवकारनो उच्चार करी पञ्चरकाण संनारी तेवार पनी मुखने प्रमार्जि ने स्वररहित, बचकार रहित, विलंब रहित, अण बांमेथके मन वचन का या गुप्त करतो साधुनी पेरे उपयोग सहित पणे जोजन करे ॥ १ ॥ पो ताना आहार प्रमाणे जोजन करी, उष्णजलथी मुखशुदि करीने नवकार कहेतो उठे, देव वांदे वांदणा देने संवरण करीने वली पण पोषधशालायें जश्ने सबाय करतो बेशे ॥ एटला माटे देश सामायिकें देशपोषधने सनावें जेम विधि कह्यो ने तेम विधियेंकरीने जोजन करवू एवं श्रागममांहे देखीयें बैयें. इहां पोसह लेवानो विधि तो पोपध प्रकरणथकी जाणवो.
हवे ए पोपधन्नतना पांच अतिचार बांमवा ते कहे . संथारूच्चार विहि, पमाय तह चेव नोयणानोए॥ पोसह विदिविवरीए, तइए सिरकावएनिंदे ॥२॥ अर्थः-संथारो ते माननो तृणनो कांबली, वस्त्रादिकना उपलक्षणथी

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