Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 04
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 379
________________ अर्थदीपिका, अर्थ तथा कथा सदित. ३६७ ते अग्निना नयथी जेम पवनेंकरी मेघ क्यांय नासी जाय तेम राजा प्रमुख सर्वना मनोरथ मिथ्या थया, तेवारें मस्तकनी पीडाने वीसारीने राजा ते पीडा सहित घरथी बाहेर निकटयो कारण मरण ते महोटो नय . बा हेर गया पडी जेम तापथकी टाहाढ नासी जाय तेम ते राजानी वेदना नाती. राजायें विचाओँ के अहो जू व्याधिनी विचित्रगति !!! हवे ते अग्नियेंकरी अनेक घर हाटादिकं सर्व घांसना समूहनी पेरें यो डीवारमा बलि जस्म थयां ते अमि सर्वने बालतो बालतो जेवारे धनद ना घरनी नजीक आव्यो तेवारें धनदना सजनें मली धनदने घरथी बाहे र निकलवा माटे घणो समजाव्यो पण व्रतनंगना नयथकी ते धनद घर थी बाहेर निकल्यो नही. विचायुं जे दुं महारा मात्र एक नवना जीवितव्य माटे व्रतनंग केम करूं हमणांतो एकजवार मरवू पडशे पण व्रत नंगथी अ नंतां मरण करवां पडशे एवं जाणी धर्मनेविपे दृढता राखी सागारी अ नशन करीने धनद तिहां घरमांहेज रह्यो पण बाहिर निकटयो नही ते ध नदना दृढधर्मना प्रनावथकी अमिपण धर्मनुं माहात्म्य देखाडवाने धनदना घरने प्रदक्षिणा देश्ने बागल चाव्या गयो ते वजानिने सन्मुख अनिमल वाथी पागल जा पोतानी मेलेंज नलवाइ गयो विषy औषध ते विषज जाणवू ए न्यायेंकरीने जाणवू पण लोक ए युक्ति जागता नथी. __ नगरमां सर्व बलीने नस्म थयुं पड़ी जेम समुश्मांहे दीप देखाय तेनी पेठे एक धनदनुं घर अखंम दीसवा लाग्युं, धूमाडो मात्र पण धनदना घर नेविपे देखाणो नही. जेम आकाशने कादव नलागे तेम लोकनां घर बली गयां बने पोते रह्यां राजादिक सर्व देहमात्रै रह्या धनदनुं एवं बाश्चर्य दे खीने सर्व अनुमोदना करता हर्ष पामता पोतपोतानें स्थानकें गया ते धन दनुं वृत्तांत त्रण लोकमां विस्तार पाम्युं राजायें पण लोकोना मुखथी ध नदनी वात सांजलीने पूर्व जे धनदनी नपर क्रोध चढयो हतो ते उपशमी गयो धनदनु अनुतचरित्र देखी चमत्कार पामी प्रनातें धनदने तेडावीने राजायें पूब्युं के हे वत्स ! देखवा योग्य नही एवा अग्निमां तुं केम बेशी रह्यो ? ते सांननीने धनदें पोतानुं व्रतसंबधि सर्वस्वरूप राजाने संजलाव्यु तेवारें राजायें धनदनी तथा तेना धर्मनी घणी प्रशंसा करी; एवं अनन्य

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