Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 282
________________ तेण सिरिकक्कुएणं जिणस्स देवस्स दुरिअरिणद्दलणं । कारावि अचलमिमं भवणं भत्तिए सुहजणयं ॥22।। अप्पिअमेय भवरणं सिद्धस्स धणेसरस्स गच्छम्मि । तह संत जम्ब अम्बयवणि भाउडपमुहगोट्ठीए ।।23।। श्लाध्ये जन्मकुले कलङ्करहितं रूपं नवं यौवनम् । सौभाग्यं गुणभावना शुचिमनः क्षान्तिर्यशो नम्रता ।। No.3 The Shantinath temple Inscription of Diyana (Sirohi) V. E. 1024 (967 AD) ॐ ॥ विष्टितकुले गोष्ठ्या बि (व)द्ध मानस्य कारितम् । [सुरूपं] मुक्तये बिम्बं कृष्णराजे महीपतौ ।। अ (प्रा)षाढ सु (शु)द्धषष्ठ्यां समा सहस्र जिनैः समभ्यधिके (1024)। हस्तोत्तरादि संस्थे निशाकरे [रित] सपरिवारे ।। [ना वा] हरे रं-: नरादित्यः सुशोभनां घटितवान् । वीरनाथस्य शिल्पिनामग्रणीः पर[म्] ॥ No.4 The Abu Inscription of V. E. 1201 भ्राजद्भास्वत्क (रक) बुराभतनुभृत्संसारभीमार्णवे, मज्जज्जन्तुसमाजतारण महाप्रौढकयानोपमः । .... .... .... .... ................................................."श्रीनाभिसनजिनः ।।1।। श्रीश्रीमालकुलोत्थनिर्मलतरप्राग्वाटवंशाम्बरे भ्राजच्छीतकरोपमो गुणनिधिः श्रीनिन्नकाख्यो गृही। आसीद् ध्वस्तसमस्तपापनिचयो वित्तो वरिष्ठाशयः, धन्या (न्यो) धर्मनिबद्धसु (शु) द्धद्विषि (धिष) रणः स्वाम्नाय __ लोकाग्रणीः ।।2।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350