Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 328
________________ षेतइ समस्त मारुयाडि माहि रूपां नाणा सहित समकित लाडू (23) लाह्या । सोनाने आषरे श्री कल्पसिद्धान्तनां पोथां लिखाव्यां श्रीजिनसमुद्रसूरि कन्हां श्रीशांतिसागरसूरि आचार्यनी प(24) द स्थापना करावी । श्री अष्टापद तीर्थइ बिहु भूमिकाए जगति करावी, बिम्ब मंडाव्या । सं० षेता भार्या सं० सरसति पुत्र (25) सं० वीदा सं० नोडा पुत्रिका धान बीजू । सं० नोडा भार्या सं० नायकदे सं० पूनी । सं० वीदा भार्या सं० अमरादे सं० विमला(26) दे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल्ल सं० करणा सं० धरणा। पुत्रिका हरषू सल) हस्तू । सं० सं० सहसमल्ल भार्या सं० (27) कुरी पुत्र भोला सं० सवीरी पुत्र डाहा सं० करणा सं० कनकादे पुत्र षीदा । पुत्रिका लाला सं० धरणा भार्या धरणिगदे पु-- (28) त्रिका वाल्ही । इत्यादि परिवार सहित सं० वीदइ श्री शत्रुञ्जय गिरनार आबू तीर्थ यात्रा कीधी । समकित मो(29) दक घृत षांड साकरनी लाहिणि कीधी। श्रीजिनहंससूरि गच्छ नायकनी वर्षग्रन्थि महोछव करी अल्ली घर घर प्रतइ (30) लाही । पांचमिनां उजमणा कीधा । पांच सोनइया प्रमुख अनेक वस्तु ऊजमणइ मांडी। श्री कल्पसिद्धान्त पुस्तक घणी (31) वार बचाव्या। पांच वार लाष नवकार गुणी चारसा जोडी अल्लीनी लाहिणि कीधी । सं० सहसमल्ल श्री शत्रु(32) जय तीर्थइ यात्रा करी जून इगढि राणपुर वीरमगाम पाटण पारकरि षांड अल्ली लाहणि करी घरे पाव्या (33) पछइ सं० वीदइ घर घर प्रतइ दस 2 सेर घृत लाया । अष्टा पद प्रासादइ बिहु भूमिकाए जगतिना बारणा (34) नी चउकी करावी । पउडसाण जाली 14 सुहणा देहरा ऊपरि कांगुरा अष्टापदइ कराव्या । काउसग्गीया (35) श्री पार्श्वनाथनां बि कराव्या। बिहं हाथिए सं० षेता सं० सरसतिनी मूत्ति करावी । संवत् 1581 वर्षे मागसिर व 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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