Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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(3) थाहरुकेन भार्या कनकादे पुत्र हरराज मेघराजादि युतेन
श्री चिन्तामणिपार्श्वनाथ 4) बिम्बं का० प्र० भ० युगप्रधान श्रीजिनसिंहसूरि-पट्टालंकार भ०
श्रीजिनराजसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
No. 33
Himatram's Temple Inscription of
Jaisalmer
(1) ॐ नमः ।। दूहा ।। ऋषभादिक चौवीस जिन पुण्डरीक गणधार ।
मन वच काया एक कर प्रणमू वारंवार ।।11। विघन हरण
सम्प(2) तिकरण श्री जिनदत्तसूरिन्द । कुसल करण कुसलेस गुरु बंदू
खरतर इन्द ।।2।। जाके नाम प्रभावतें प्रगटै जय जयकार । सानिधकारी परम गुरु रहौ सदा निरधार ।।3।। सं० 1891 रा मिति आषाढ सुदि 5 दिने श्री जेसलमेरु नगरे महाराजाधिराज महारावलजी श्री 108 श्री गजसिंहजी राणावतजी
श्री रूपजी बापजी विजयराजे बृहत्खरतर भट्टारक (5) गच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः 2
पट्टप्रभाकर जं० । यु०। भ०। श्री 108 श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः 2
उपदेशा(6) त् श्री बाफणा गोत्रे सा० श्री देवराजजी तत्पुत्र गुमानचन्दजी
भार्या जैता तत्पुत्र 5 बहादरमल्लजी भार्या चतुरा । सवाईरांम.. (7) जी भार्या जीवां, मगनीरांमजी भार्या परतापां, जोरावरमल्लजी
भार्या चौथां, परतापचंदजी भार्या मांनां एवं बहादुरमल्लजी त
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