Book Title: Jain Inscriptions of Rajasthan
Author(s): Ramvallabh Somani
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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(61) प्रमान है । देसह विदेश मांह कीरत प्रकास कोनो सेठ सहु हेठ कवि करत बखान है | दूहा । अठारसै छि
(62) नूवै जेठ मास सुदि दोय । लेख लिख्यो प्रति चूंप सूं भवियण बांचो जोय || १ || सकल सूरि सिर मुगटमणि
(63) श्री जिन महेंद्रसूरिंद । चरण कमल तिनके सदा सेवं भवियण वृंद ||२|| कीनो प्रति प्राग्रह थकी जेस
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( 64 ) लमेरु चोमास । संघ सहू भक्ति करै चढते चित्त उलास ||३| ताकी आज्ञा पाय करि धरि दिल मैं प्राणंद
( 65 ) ज्युं की त्युं रचना रची मुनि केसरीचंद । ४ । भूलो जो परमाद मैं अक्षर घाट ही बाध । लिखत षोट -
( 66 ) ई हुवै सो षमीयो अपराध ||५|| इति श्रीः ॥ श्री ॥
No. 34
Jalore inscription
(1) संवत् 1175 वैशाख वदि 1 शनौ श्रीजाबालिपुरीय चैत्ये षां ( ? ) गतश्रावकेण वीरकपुत्रेण उबोचन - पुत्र शुभंकर बेहडात्यां ( ? ) सहितेन च
( 2 ) तत्पुत्र देवंग देवधर स्यां ( ? ) पुत्रेण तथा जिनमति-भार्या प्रोच्छा ( त्सा) हितेन श्री सुविधिदेवस्य खत्तके द्वारं कारितं धर्मार्थमिति ।। मंगलं महाश्रीः ॥
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No. 35
Jalore inscription
(1 ) . ( साक्षा) त्रैलोक्यलक्षी विपुल कुलगृहं धर्मवृक्षालवालं श्रीमन्नाभेयनाथक्रमकमलयुगं मङ्गलं वस्तनोतु । मन्ये माङ्गल्यमाला
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